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________________ तीर्थकर चरित्र २०९ सामने गया । कुलपति की प्रार्थना पर भगवान ने उसरात्रि को वहीं रहने का विचार किया । वे रात्रि की प्रतिमा धारणकर वहीं ध्यान करने लगे। दूसरे दिन प्रातः ही जब भगवान विहार करने लगे तब कुलपति ने आगामी चातुर्मास आश्रम में ही व्यतीत करने की प्रार्थना की। ध्यानयोग्य एकान्तस्थल देखकर भगवान ने कुलपति की प्रार्थना स्वीकार की । भगवान ने वहाँ से विहार कर दिया । भासपास के स्थलों में विचर कर भगवान चातुर्मास काल व्यतीत करने के लिये आश्रम में पधार गये । कुलपति ने उन्हें घास की एक झोपड़ी में ठहराया । भगवान झोपड़ी में रहकर अपना सारा समय ध्यान में व्यतीत करने लगे। यद्यपि कुलपति के आग्रहवश प्रभु ने वर्षाकाल आश्रम में ही विताना स्वीकार कर लिया था पर कुछ समय रहने पर उन्हें मालूम हो गया कि यहाँ पर उन्हें शान्ति नहीं मिलेगी। आश्रमवासियों की विपरीत प्रवृत्तियों के कारण भगवान के ध्यान में विक्षेप होने लगा। जगलों में घास का अभाव हो गया था। वर्षा से अभी नवीन घास उगी न थी इसलिये जंगल में चरने वाले ढोर जहाँ घास देखते वहीं दौड़ जाते । कुछ गायें तापसों के आश्रम में आती और झोपड़ियों का घास चर जाती । तापस लोग अपनी झोपडियों की रक्षा के लिये डंडे ले ले कर गायों के पीछे दौड़ते और उन्हें मार भगाते किन्तु भगवान तापसों की इन प्रवृत्तियों में जरा भी भाग नहीं लेते । वेसदैवं ध्यान में लीन रहते । कौन क्या करता है इसपर वे जरा भी ध्यान नहीं देते । भगवान की झोपड़ी की घास को गायें खा जाती तव भी भगवान उन्हें जरा भी नहीं रोकते । भगवान की इस अपूर्व समता से तापस जल उठे। वे कुलपति के पास आकर कहने लगे-आप कैसे अतिथि को लाये हैं ? वह तो अकृतज्ञ, उदासीन और भालसी है । झोपड़ी की घास ढोर खा जाते हैं और वह चुपचाप बैठा देखता रहता है। . १४
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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