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________________ २१० आगम के अनमोल रत ' तापसों की इस शिकायत पर कुलपति भगवान के पास आया और बोला-कुमार ! एकपक्षी भी अपने घोंसले का रक्षण करता है और तुम क्षत्रिय होकर भी अपने आश्रमस्थान की रक्षा नहीं कर सकते ? महद् आश्चर्य है। आश्रमवासियों के इस व्यवहार से भगवान का दिल उठ गया । उन्होंने सोचा-अव मेरा यहाँ रहना भाश्रमवासियों के लिये अप्रीतिकर होगा, इसलिए वर्षा काल के पंद्रह दिन व्यतीत हो जाने पर भी वहाँ से अस्थिक ग्राम की ओर प्रयाण कर दिया-उस समय भगवान ने पांच प्रतिज्ञाएँ की १-अव से अप्रीतिका स्थान में नहीं रहूँगा। . . २-नित्य ध्यान में रहूँगा। ३-नित्य मौन रखूगा । ४-हाथ में भोजन करूँगा। ५-गृहस्थ का विनय नहीं करूँगा। भगवान मोराक गांव से विहार कर अस्थिक गांव में आये । वहाँ शूलपानी व्यंतर के मन्दिर में ठहरने के लिये भगवान ने गांववालों से भाज्ञा मांगी। गांववालों ने कहा-देवार्य ! रात्रि में यदि कोई पथिक इस मन्दिर में ठहरता है तो यह यक्ष उसको मार डालता है । अतः यहाँ रहना खतरनाक है। भगवान ने कहा-इस बात की आप लोग चिन्ता न करें । मुझे केवल आप लोगों की अनुमति चाहिये । भगवान के विशेष आग्रह पर गांववालों ने मजबूर होकर मन्दिर में ठहरने की आज्ञा दे दी । भगवान मन्दिर के एक कोने में जाकर ध्यान करने लगे। । · भगवान की निर्भयता को शूलपानी ने धृष्टता समझा । उसने सोचा-यह व्यक्ति बड़ा धृष्ट है । भरने की इच्छा से ही यहां आया है । गांववालों के मना करने पर भी इसने यहाँ रात्रि व्यतीत करने को निश्चय किया है। रात होने दो फिर इसकी खबर लेता हूँ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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