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________________ २०८ आगम के अनमोल रत्न भाज्ञा हो तो मैं आपकी सेवा में रहूँ। भगवान ने उत्तर दिया- "हे शक! न कभी ऐसा हुआ है न होगा कि देवेन्द्र या सुरेन्द्र की सहायता से भहन्त केवलज्ञान और सिद्धि प्राप्त करे । भर्हन्त अपने ही बल और पराक्रम से केवलज्ञान प्राप्त करके सिद्धि प्राप्त करते हैं।" तब इन्द्र ने मरणान्त उपसर्ग टालने के लिये प्रभु की मौसी के पुत्र सिद्धार्थ नामक व्यंतरदेव को प्रभु की सेवा में नियुक्त कर दिया । . दूसरे दिन भगवान ने कारग्राम से विहार किया और वे कोल्लागसन्निवेश भाये । वहाँ बहुल नामक ब्राह्मण के घर परमान्न से भगवान ने छठ तप का पारणा किया । देवताओं ने उसके घर वसुधारादि पांच दिव्य प्रकट किये । i दीक्षा के समय प्रभु के शरीर पर देवताओं ने गोशीर्ष चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों का विलेपन किया था। इससे अनेक भँवरे और अन्य जीव-जन्तु प्रभु के शरीर पर आकर डंख मारते थे और सुगन्ध का रसपान करने की कोशिश करते थे । अनेक युवक भगवान के पास आकर पूछते थे "भापका शरीर ऐसा सुगन्धपूर्ण कैसे रहता है ? हमें भी. वह तरकीब बताइये, वह भौषध दीजिये जिससे हमारा शरीर भी सुगन्धमय. रहे।" परन्तु मौनावलम्बी ,प्रभु से उन्हें , कोई उत्तर नहीं मिलता। इससे वे बहुत क्रुद्ध होते और प्रभु को. अनेक तरह से. कष्ट देते । . . अनेक स्वेच्छा-विहारिणी स्त्रियाँ प्रभु के मनमोहक रूप को 'देखकर कामपीड़ित होती , और दवा की तरह प्रभुअंग-संग चाहती . परन्तु वह न मिलता । तब वे, अनेक तरह का उपसर्ग करती और अन्त में हारकर चली जाती-1, . . . . . . भगवान महावीर कोल्लागसन्निवेश से विहार कर मोराक सनिवेश पधारे। वहाँ दुईज्जन्तक नाम के तापसी का आश्रम था। भगवान वहाँ पधारे। इस मश्रिम का कुलपति राजा सिद्धार्थ का मित्र था । भगवान महावीर को भाते हुए देखकर वह उनके सम्मान के लिये
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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