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________________ आगम के अनमोल रत्न www पर इन्द्रनीलमणि के तोरण लटका दिये गये । राजमार्गों को मुक्ता के रंगीन स्वस्तिकों से सजाया गया । कई नववधुओं ने अपने अपने गृहांगों में सुन्दर सुन्दर रंगीन चित्र बनाये । ___ श्रावण के बादल आकाश में छाये हुए थे। ईशानकोण का वायु किसी बादल को खींच ले जाता था और किसी को धरतीपर बरसा देता था। ऊँचे ऊँचे भवनों के शिखरों पर नृत्य करते हुए मयूर उन्मुक्तकण्ठ से केकारव कर रहे थे। द्वारिका के महाप्रभु श्रीकृष्ण अपने लघुभ्राता नेमिकुमार की विशाल बारात लेकर विवाह करने के लिये चल पड़े। अश्व, हाथी, और शिविकाओं से भरी हुई यह वारात जहाँ ठहरती वहाँ एक छोटी सी नगरी बस जाती थी। उसकी सजावट और शोभा को देखने के लिये दूर दूर से लोग पंक्तियों में चले आरहे थे। आकाश में रहे हुए देवतामण पुष्प बरसाकर भगवान अरिष्टनेमि का स्वागत कर रहे थे। इधर महाराज उग्रसेन यादवों की विशाल बारात का स्वागत करने के लिये आतुर थे। वे चाहते थे कि अरिष्टनेमि की इस बारात का स्वागत ऐसा हो कि द्वारिका के महारथी भी एकबार । दाँतों तले अंगुली दवाने लगे। राजद्वार पर नगाड़े बज रहे थे और शहनाइयों के अमृतस्वर तो समाप्त ही नहीं होते थे। महारानी अन्तःपुर में तैयारियां कर रही थीं। अभी बारात आ पहँचेगी, नगर द्वार पर वरराजा का मोतियों से स्वागत करने के लिये जाना पड़ेगा । वे तैयारियों की शीघ्रता में कोमल गलीचों को दवाती हुई। आगे बढ़ रही थीं । राज्यकुल की नवबधुओं के उत्साह का कोई पार न था । उनके उत्साह सूचक नूपुरों की आवाजों से सारा महल गूंज रहा था। उनके हास्य से सारामहल हँस पड़ता था । " - लग्नवेला समीप आरही थी। राजमहल के प्रांगण में तैयारियों हो रही थीं। पुरोहित और पुजारी आगये थे । वेदिका पर कुकुम
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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