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________________ तीर्थदर चरित्र १६३ और अक्षत रख दिये गये थे। मण्डप के वाहर नवयुवतियाँ मंगलकलश लिये वरराजा का स्वागत करने के लिये खड़ी थीं। ___ यादवकुल-शिरोमणि नेमिकुमार का रूप अद्भुत था। सिर पर मुकुट, भुजाओं में भुजवन्ध, कानों में कुण्डल, आजानुबाहु में सुन्दर चाप । वे कामदेव के दूसरे अवतार लगते थे । वे अकेले ही सारथी के साथ रथ पर बैठे हुए थे । महल के निकट पहुँचते हो शहनाइयों और गीतों की भावाज को भेदते हुए पशुओं के चीत्कार सुनाई दिये । अरिष्टनेमि के कानों में यह चीत्कार शूल की भांति चुमे । कुछ क्षण के बाद शहनाई के बजाय केवल पशुओं की चीत्कार ही चीत्कार सुनाई देने लगी। वे सिहर उठे । हृदय धड़कने लगा। उन्होंने सारथी से पूछा-यह शोकपूर्ण हृदय को हिलादेने वाला भाक्रन्दन क्यों और कहाँ से भारहा है ? सामने बाड़ों में वन्द पशुओं की ओर इशारा करके सारथी बोलादीनानाथ ! यह पशुपक्षी वारात में आये हुए मांस-भोजी अतिथियों की भोजन सामग्री हैं। अपना स्थान छूट जाने से, स्वाधीनता लुट जाने से और प्रिय साथियों का साथ छूट जाने से तथा अपने प्रिय साथियों का विछोह होजाने से, ये पशु व्याकुल और भयभीत हो रहे हैं । अज्ञात पीड़ा से छटपटा रहे हैं । अश्रुतपूर्व वाधध्वनियों से एवं मृत्यु की आशंका से उनका हृदय विह्वल हो रहा है । सारथी के मुख से यह सुनकर उनकी आत्मा कांप उठी । उन्होंने इस अनर्थ को टालने का निश्चय किया । करुणा के सागर भगवान इस महान् हिंसा के भागी कैसे बन सकते हैं! वे मन ही मन सोचने लगे-इस समय मेरे ही कारण इन पशुओं की बलि होगी । मैं इन पशुओं के शव पर सुख का महल खड़ा नहीं करूँगा। उसीक्षण नेमिकुमार ने सारथी से कहा-सारथी ! जाओ 1 बाड़े का द्वार खोलकर इन पशुओं को मुक्त कर दो। मैं इन पशुओं की बलिवेदी पर सेहरा नहीं बांध सकता ! सारथी ने नेमिकुमार के आदेश से बाड़े का द्वार
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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