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________________ तीर्थङ्कर चरित्र १६१ सभी ने प्रस्ताव स्वीकार करते हुए यह उपयुक्त समझा कि श्री कृष्ण स्वयं राजा उग्रसेन के महल में जाकर कन्या देख ले और विवाह का निश्चय करदे | कन्या की मांग करने के लिए श्रीकृष्ण स्वयं महाराज उग्रसेन के घर गये । कृष्ण वासुदेव के भागमन से उग्रसेन के आनन्द की सीमा न रही । उन्होंने वड़ो श्रद्धा और भक्ति से श्रीकृष्ण का राजोचित सन्मान किया । महाराज उग्रसेन से कुशलक्षेम सम्बन्धी वार्ता विनिमय के बाद श्रीकृष्ण बोले- महाराज ! मैं आपकी गुणवती पुत्री राजीमती का विवाह यदुकुलनन्दन अरिष्टनेमि से करना चाहता हूँ । आपकी कन्या की याचना करने के लिये ही मै आपके द्वार पर उपस्थित हुआ हूँ । आप निराश तो न करेंगे ? राजी का चेहरा खिल उठा । राजीमती के मुखमण्डल पर अरुणाई की आभा प्रस्फुटित हो गई और वह वहाँ से खिसक गई । राजा उग्रसेन अरिष्टनेमि के गुणों की प्रशंसा सुन चुके थे । हृदय में उमड़ते हुए प्रसन्नता के सिन्धु को रोकते हुए उन्होंने कहा - " आपको निराश किया ही कैसे जा सकता है । जब कि हम स्वयं राजीमती के लिये ऐसे ही उपयुक्त वर की खोज में थे ।" किन्तु मेरी एक शर्त है । श्रीकृष्ण ने कहा- वह क्या ? उग्रसेन - कुमार सपरिवार यहाँ पदार्पण करें । श्रीकृष्ण - मुझे आपकी यह शर्त मंजूर है | आप विवाह की तैयारियाँ प्रारंभ करदें । श्रावणशुक्लाषष्टी के शुभमुहूर्त में कुमार का विवाह होगा | कुमार के साथ यादवों का विशाल परिवार होगा । श्रीकृष्ण स्वीकृति प्राप्तकर द्वारावती लौट आये । श्रीकृष्ण के लौटते ही महाराज समुद्रविजय ने विवाह की तैयारियाँ प्रारम्भ करदीं । सभी यादवों को आमंत्रण भेजे गये । द्वारिकानगरी नववधू की तरह सजायी गयी । जगह जगह बाजे बजने लगे । मंगलगीत गाये जाने लगे । नगरी के प्रत्येक द्वारपर सुवर्ण के स्तम्भों ११
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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