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________________ तीर्थङ्कर चरित्र : १४३ • जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में राजगृही नाम की नगरी थी। वहाँ सुमित्र नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे। उसके पद्मावती नाम की एक रानी थी। सुरश्रेष्ठ का जीव श्रावणी पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र में पद्मावती रानी के उदर में उत्पन हुआ। तीर्थर को सूचित करने वाले चौदह महास्वप्न रानी ने देखे । रानी गर्भवती हुई। गर्भकाल के समाप्त होने पर जेठवदि अष्टमी के दिन श्रवण नक्षत्र में कूर्मलांछन वाले श्यामवर्णी पुत्र को महारानी ने जन्म दिया । इन्द्रादि देवों ने जन्मोत्सव किया। माता पिता ने वालक का नाम मुनिसुव्रत रखा । युवावस्था में भगवान मुनिसुव्रत का प्रभावती आदि श्रेष्ठ राजकुमारियों के साथ विवाह हुमा । भगवान की काया २० धनुष ऊँची थी। मुनिसुव्रत कुमार को प्रभावती रानी से एक पुत्र हुआ। जिसका नाम सुव्रत रखा गया। साढ़े सात हजार वर्ष की अवस्था में भगवान ने पिता का राज्य ग्रहण किया। १५ हजार वर्षे राज्य करने के बाद भगवान ने दीक्षा लेने का निश्चय किया। लोकान्तिक देवों ने भी आकर भगवान से दीक्षा के लिए निवेदन किया। भगवान ने वर्षीदान दिया। देवों द्वारा सजाई गई अपराजिता नाम की शिविका पर आरूढ़ होकर नीलगुहा नाम के उद्यान में आये। वहाँ फाल्गुन शुक्ला १२ के दिन श्रवण नक्षत्र में दिवस के अन्तिम प्रहर में एक हजार राजाओं के साथ भगवान ने दीक्षा ग्रहण की। भगवान को उस समय मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हुआ। तीसरे दिन भगवान ने राजगृही के राजा ब्रह्मदत्त के घर खीर का पारणा किया। वहाँ पाँच दिव्य प्रकट हुए । ग्यारह मास तक छदमस्थ अवस्था में रहने के बाद भगवान नीलगुहा उद्यान में पधारे। वहाँ चंपक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए फाल्गुन कृष्ण द्वादशी के दिन श्रवण नक्षत्र में घातीकर्म का क्षयं कर केवलज्ञान प्राप्त किया। इन्द्रोंने आकर भगवान का केवलज्ञान उत्सव मनाया। समवशरण की रचना हुई। समवशरण में बैठकर भगवान ने
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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