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________________ १४२ आगम के अनमोल रत्न की । बीसवें पाट के पश्चात् उनके तीर्थ में किसी ने मोक्ष प्राप्त नहीं किया और दो वर्ष का पर्याय होने पर अर्थात् मल्ली अरिहंत को केवल ज्ञान प्राप्त किये दो वर्ष व्यतीत हो जाने पर पर्यायान्तकर भूमि हुई भव पर्याय का अन्त करने वाले-मोक्ष जाने वाले साधु हुए। इससे पहले कोई जीव मोक्ष नहीं गया। . मल्ली अरिहंत पच्चीस धनुष ऊँचे थे। उनके शरीर का वर्ण प्रियंगु के समान था। समचतुरस्त्र संस्थान और वज्रऋषभनाराच संहनन था। वह मध्यदेश में सुख-सुखे विचरकर समेतशिखर पर्वत पर आये और वहाँ पादोपगमन अनशन अंगीकार किया। मल्ली अरहंत एक सौ वर्ष गृहवास में रहे। सौ वर्ष कम पच. पन हजार वर्ष केवलोपर्याय पालकर कुल पचपन हजार वर्ष की आयु में प्रीष्म ऋतु के प्रथम मास, दूसरे पक्ष अर्थात् चैत्र शुक्ला चौथ के दिन भरणी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर *अद्धरात्रि के समय आभ्यंतर परिषद् की पांच सौ साध्वियों और वाह्य परिषद् के पांच सौ साधुओं के साथ निर्जल एक मास के अनशन पूर्वक दोनों हाथ लम्बे कर वेदनीय भायु और गोत्र कर्म के क्षीण होने पर सिद्ध हुए। इन्द्रादि देवों ने निर्वाणोत्सव किया । भरनाथ के निर्वाण के बाद कोटी हजार वर्ष के बीतने पर मल्ली भरहंत ने निर्वाण प्राप्त किया। २०. भगवान् मुनिसुव्रत । जम्बूद्वीप के अपरविदेह में भरत नामक विजय में चपा नामकी नगरी थी। वहाँ सुरश्रेष्ठ नाम का राजो राज्य करता था। उसने नन्दनमुनि के पास दीक्षा ग्रहण की और तपस्या कर तीर्थङ्कर नाम कर्म का उपार्जन किया । अन्त समय में संथारा कर वह प्राणत देवलोक में महद्धिक देवता हुभा। *त्रिषष्टी के अनुसार फाल्गुन शुक्ला द्वादशी के दिन याम्य नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त किया।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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