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________________ ( ८४ ) अमोघवर्ष जैसे वीर तथा उदार थे, उसी प्रकारसे विद्वान् भी थे। उन्होंने संस्कृत और कानड़ी भाषामें अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है, जिसमेंसे एक प्रश्नोत्तर रत्नमालाका उल्लेख तो ऊपर हो चुका है - जो छप चुकी है, दूसरा प्राप्य ग्रन्थ कवि - राजमार्ग है । यह अलंकारका ग्रन्थ है, और कानड़ी भाषाके उत्कृष्ट ग्रन्थोंमें गिना जाता है । इनके सिवाय और भी कई ग्रन्थ अमोघवर्षके सुने जाते हैं, परन्तु वे अप्राप्य हैं । इतिहासज्ञोंने अमोघवर्षका राज्यकाल शक संवत् ७३६ से ७९९ तक निश्चय किया है । जिनसेनस्वामीका स्वर्गवास शक संवत् ७६५ के लगभग निश्चित किया जा चुका है। इससे समझना चाहिये कि जिनसेनके शरीरत्यागके समय अमोघवर्ष महाराज राज्य ही करते थे। राज्यका त्याग उन्होंने शक संवत् ८०० में किया है जब कि आचार्य - पदपर गुणभद्रस्वामी विराजमान थे । यह वात अभी विवादापन्न ही है कि अमोघवर्षने राज्यको छोड़कर मुनिदीक्षा ले ली थी या केवल उदासीनता धारण करके श्रावककी कोई उत्कृष्ट प्रतिमाका चरित्र ग्रहण कर लिया था । हमारी समझमें यदि उन्होंने मुनिदीक्षा ली होती; तो प्रश्नोत्तररत्नमालामें वे अपना नाम ' अमोघवर्ष ' न लिखकर मुनि अवस्था धारण किया हुआ नाम लिखते । इसके सिवाय त्याग करने के समय उनकी अवस्था लगभग ८०. वर्षकी राज्यका 4 थी, इसलिये भी उनका कठिन मुनिलिंग धारण करना संभव प्रतीत नहीं होता है । F
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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