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________________ । (८३) / नगर मान्यखेट इतना विशाल और सुन्दर था कि उसके साम्हने . इन्द्रपुरीकी हसी होती थी। मानों उन्होंने उसे देवोंके गर्वको खर्व करनेके लिये अपनी राजधानीका स्थान बनाया था तस्य श्रीमदमोघवपतेश्वालुक्यकालानल: सूनुर्भूपतिरूर्जिताहितवधृवैधव्यदीक्षागुरुः । आसीदिन्द्रपुराधिकं पुरमिदं श्रीमान्यखेटाभिधं येनेदं च सरः कृतं गुरुकल्पासादमन्तःपुरम् ॥ (इंडियन् एण्टिक्वेरी १२॥ २६४-६७) तत्सुनुरानतनृपो नृपतुंगदेवः सोऽभूत् स्वसैन्यभरभंगरिताहिराजः । यो मान्यखेटममरेन्द्रपुरोपहासि गीर्वाणगर्वमिव खर्वयितुं व्यत्त ॥ (एपिग्राफिआ इण्डिका ५॥ १९२-९६) तस्माच्चामोघवर्षोऽभवदतुलवलो येन कोपादपूर्वचालुक्याभ्यपखाद्यैर्जनितरतियमः प्रीणितोविंगवल्लयाम् । वैरिश्चाण्डोदरान्तर्वहिरुपरितले यन्न लब्धावकाशं तोयव्याजाद्विशुद्धं यश इव निहितं तज्जगत्तुंगसिन्धोः॥ चतुर्थ गोविन्दराजका दानपत्र । (इंडियन एण्टिक्वेरी १२।२४९-५२) अमोघवर्षके एक शिलालेखमें लिखा है-“वङ्गाङ्गमगधमालवर्वगीशैरचितो" (इंडियन एण्टिक्वेरी नि० १२पृष्ठ २१८) निससे मालूम होता है कि वंग अंग मगध मालव और उगीके राजा उनकी सेवा करते थे । अर्थात् अपने समयके वे एक महान् सम्राट् थे।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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