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________________ (२२) असम्मत विधवाविवाहकी रीति जारी करनेसे जातियोंमें फूटका वीज बोया गया, भट्टारकोंमें मूर्खता तथा सुखप्रियता आई और जैनधर्मके दुर्दिन लगे, तव धीरे २ यह गद्दी रसातलको पहुंच गई । जहांपर सैकड़ों वर्षतक भगवान् वीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र, अकलंकभट्ट सरीखे महान् तपस्वी और दिग्गज विद्वान् रह चुके हैं, और महापुराण जैसे अपूर्व ग्रन्थ बनाये गये हैं, वहांपर अब एक साधारण त्यागी ब्रह्मचारीको तथा महापुराणके एक श्लोकका भी अर्थ लगानेवालेको न पाकर ऐसा कौन सहृदय होगा जिसका हृदय विदीर्ण न होता हो ? हाय ! आज कोई ऐसा भी पुरुष नहीं है, जो इस प्राचीन नगरमें और कुछ नहीं तो प्राचीन मन्दिरोंका जीर्णोद्धार करके भगवान् जिनसेन और गुणभद्रका एक स्मारक ही बनवा देवे! कालप्रभो ! तुम्हारी लीला बड़ी ही निर्दयतासे भरी हुई है। न जाने . तुम्हारे विशाल उदरगर्ममें मान्यखेट सरीखे हमारे कितने गौरवस्थल सदाके लिये समा गये हैं ! मान्यखेटमें बहुत करके वलात्कारगणकी गद्दी है । यह गही कहते हैं कि, इन्द्रप्रस्थकी ( देहलीकी ) गद्दीके लगभग ५०-६० वर्षे पीछे स्थापित हुई थी। फीरोजशाह वादशाहने वि० संवत् १४०७ से १४४४ तक राज्य किया है । इसके समयमें प्रभाचंद्राचार्यसे भट्टारकोंकी उत्पत्ति हुई है, और पहले पहल इन्द्रप्रस्थमें पट्ट स्थापित हुआ है। इस हिसाबसे विक्रमकी पन्द्रहवीं शताब्दिके प्रारंभमें अथवा चौदहवीं शताब्दिके उत्तरार्धमें मलखेड़में भट्टारकोंकी गद्दी स्थापित हुई होगी। इसके पहले वस्त्रधारी भट्टारकोंका वहां नाम निशान
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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