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________________ (२३) भी नहीं रहा होगा। यह ठीक है कि, पट्ट स्थापन होनेके पहले वहां सौ दो सौ वर्ष दिगम्बर मुनियोंका अभाव रहा होगा । क्याकि ऐसा न होता, तो दिगम्बरोंके स्थानमें वन्नधारियोंका होना कोई स्वीकार न करता । लोगोंने समयको और मुनियोंके अभावको देखकर 'सर्वथा न होनेसे कुछ होना अच्छा है' की नीतिके अनुसार वस्त्रधारियोंको ही उपकारकी दृष्टि से बहुत समझा होगा । परन्तु उस सौ दो सौ वर्षके समयसे पहले वहां दिगम्बर मुनियोंका ही संघ रहा होगा। भगवान् जिनसेन और गुणभद्राचार्य दिगम्बर ही होंगे । बल्कि उनके समयमें और भी सैकड़ों दिगम्बर मुनि होंगे, जिनका शासन वे करते होंगे; इस विषयमें कोई सन्देह नहीं है। मान्यखेटमें सेनसंघके सिवाय दुसरे संघोंके भी अनेक आचार्य रहे होंगे, ऐसा जान पड़ता है । क्योंकि भगवान अकलंकदेवमट्ट भी जो कि देवसंवके आचार्य थे, इसी मान्यखेटमें हुए हैं। हमारे पाठकोंने अकलंकचरित्रमें पढ़ा होगा कि, मान्यखेटमें विक्रमकी नवमी शताब्दके लगभग महाराजा अमोववर्षके ही घरानेका साहमतुंग (शुमतुंगया कृष्णराज ) नामका राजा राज्य करता था। अकलंक देव उसके प्रधान मंत्री पुरुषोत्तमके पुत्र थे । विद्या प्राप्त करनेपर अकलंकदेवने शुभतुंगकी सभामें आकर निम्नलिखित श्लोक पढ़े थे, जो कि श्रवणबेलगुलके जिनमन्दिरकी एक शिलापर लिखे राजन् साहसतुंग सन्ति बहवः श्वेतातपत्रा नृपाः किन्तु त्वत्सहशा रणे विजयिनस्त्यागोन्नता दुर्द्धमाः।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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