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________________ (२०) समाप्ति वंकापुरमें की थी जो कि वनवासदेशकी राजधानी था और जहां अकालवर्षका सामन्त लोकादित्य राज्य करता था । वंकापुर इस समय धारवाड़ प्रान्तमें एक कस्वा है । और पाश्र्वाभ्युदय काव्यकी रचना अमोघवर्षकी राजधानी मान्यखेटमें हुई होगी, ऐसा जान पड़ता है। क्योंक पंडिताचार्य योगिराट्की कथाकी घटनासे अथवा ऐसी ही और किसी घटनाके कारण इस ग्रन्थके वनानेकी प्रवृति महाराज अमोघवर्षकी राजसभामें ही होनेकी अधिक संभावना है। मान्यखेट उस समय कर्नाटक और महाराष्ट्र इन दो विस्तृत देशोंकी राजधानी था । इससे पाठक जान सकते हैं कि इस नगरका वैभव कितना बढ़ा चढ़ा होगा । उस समय उक्त देशोंमें और कोई भी शहर मान्यखेट सरीखा धनजनसम्पन्न नहीं था । तत्कालीन कई एक दानपत्रों और शिलालेखोंमें उसे इन्द्रपुरीकी हँसी करनेवाला वतलाया है। परन्तु इस समय उसी मान्यखेटको देखिये, तो इस वातपर विश्वास ही नहीं होता है कि यह कभी एक बड़ा भारी नगर रहा होगा । मान्यखेटको इस समय मलखेड़ कहते हैं । हैद्राबाद रेलवे लाइनपर चितापुर नामके स्टेशनसे आगे मलखेड़गेट . नामका एक छोटासा स्टेशन है। इस स्टेशनसे मलखेड ग्राम ४-५ मील है। यह ग्राम निजामसरकारके कृपापात्र एक मुसलमान . जागीरदारके अधिकारमें है । इस गांवके पश्चिममें एक किला है। किलेसे सटकर एक रमणीय सरिता वहती है । सुनते हैं. कि, पहले इस किलेमें एक विशाल और सुन्दर जैनमन्दिर था,
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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