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________________ (१९) स्थानपरिचय। साधुओंके रहनेका कोई नियत स्थान नहीं होता है । एक ही स्थानमें रहनेसे साधुओंका चरित्र मलिन हो जानेकी संभावना रहती है। इसलिये दिगम्बर मुनि निरंतर एक स्थानसे दूसरे स्थानको विहार किया करते थे और अपने उपदेशोंसे संसारका कल्याण किया करते थे। ऐसा मालूम होता है कि विक्रमकी नवमी शताब्दिमें जब कि भगवान् जिनसेन और गुणभद्र हुए हैं, दिगम्बरवृत्ति बनी हुई थी, सैकड़ों दिगम्बरमुनि विहार किया करते थे और उनके संवका शासन संघाधिपति आचार्य करते थे। तो भी मुनियोंके चरित्रपर उस समयने तथा उस समयकी परस्थितिने अपना थोड़ा बहुत प्रभाव डाल दिया था, जिससे तत्कालीन आचार्योंने देशकालके अनुसार एक ही स्थानमें न रहनेके तथा राजसभादिमें न जाने आदिके वन्धनोंमें कुछ ढिलाई कर दी थी, जान पड़ता है कि भगवान् जिनसेन और मुणभद्र स्थायीरूपमें तो नहीं, परंतु अधिकतर कर्णाटक और महाराष्ट्र देशके ही भीतर जहां कि राष्ट्रकूट राजाओंका राज्य था रहे होंगे। क्योंकि दूसरे प्रदेश जैनमुनियोंके लिये इतने निरापद नहीं थे । बल्कि ये प्रायः राजधानियोंमें ही अधिक रहे होंगे और वहीं रहकर जैनशासनका उद्योत करते रहे होंगे। क्योंके तत्कालीन राजा अमोघवर्ष, अकालवप और नामन्त लोकादित्य इनके भक्त थे और उनका इन्हें राजधानियोंमें रहनेके लिये आग्रह रहता होगा। राजधानियोंके सिवाय अन्य स्थानों में इनके रहने. का उल्लेख भी बहुत कम मिलता है । गुणभद्रस्वामीने उत्तरपुराणकी
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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