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________________ (१८) यसेनमुनिकी मृत्यु होनेपर सिद्धान्तोंका उपदेश किया और पीछे वे भी स्वर्गलोकको सिधारे। इससे यह जान पड़ता है कि, वीरसेनस्वामीके पश्चात् पद्मनन्दि नामके मुनि और फिर उनके पीछे जिनसेनस्वामी आचार्यपदपर सुशोभित हुए थे। इसी प्रकारसे जिनसेनस्वामीके पश्चात् विनयसेन और फिर गुणभद्रस्वामी पट्टाधीश हुए थे। पद्मनन्दि आचार्य कौन थे, इस विषयमें निश्चयपूर्वक कुछ भी नहीं कहा जा सकता है । जिनसेन और गुणभद्रके प्राप्य ग्रन्थोंमें उनका कोई उल्लेख नहीं मिलता है। परन्तु यदि पद्मनन्दि एलाचार्यका ही नामान्तर हो-जैसा कि प्रसिद्ध है, तो ऐसा हो सकता है कि, वीरसेनके गुरु जो एलाचार्य थे-जिसका कि उल्लेख श्रुतावतार कथामें है-वे ही वीरसेनके पीछे संघाधिपति हुए होंगे और उनके पीछे जिनसेन हुए होंगे। विनयसेन जिनसेन स्वामीके सतीर्थ थे, और विद्वान थे, इसलिये उनके पश्चात् वे आचार्य हुए ही होंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं है । विनयसेनका उल्लेख पार्वाभ्युदयकाव्यमें मिलता भी है। गुणभद्रस्वामीके पश्चात् आचार्यका पट्ट बहुत करके उनके मुख्य शिष्य लोकसेनने सुशोमित किया होगा। १. पद्मनन्दि यह नाम नन्दिसंघके आचार्य सरीखा जान पड़ता है। क्योंकि नन्दि, चन्द्र, कीर्ति और भूषण ये चार शब्द प्रायः नन्दिसंघके मुनियोंके नामके साथ ही रहा करते हैं । सेनसंघके आचार्योंके नाममें तो सेन, भद्र- { राज और वीर्य शब्द लगाये जाते हैं। हां ऐसा हो सकता है कि, किसी का• रणसे नन्दिसंधी होकर भी पद्मनन्दि सेनसंघके आचार्य बना लिये गये हों।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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