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________________ ( १२ ) श्रीवीरसेन इत्यात्तभट्टारकपृथुप्रयः । सनः पुनातु पूतात्मा कविन्दारको मुनिः॥५५॥ लोकवित्वं कवित्वं च स्थितं भट्टारके द्वयम् । वामिता वाग्मिता यस्य वाचा वाचस्पतेरपि॥५६॥ सिद्धान्तोपनिवन्धानां विधातुर्मद्गुरोश्चिरम् । मन्मनःसरसि स्थेयान्मृदुपादकुशेशयम् ।। ५७ ॥ धवलां भारती तस्य कीर्तिं च विधुनिर्मलाम् । धवलीकृतनिःशेषभुवनां तन्नमीम्यहम् ॥ ५८ ॥ इन श्लोकोंका अभिप्राय यह है कि, भट्टारककी बड़ी भारी प्रसिद्ध पदवी प्राप्त करनेवाले, पवित्रात्मा और कविशिरोमणि श्रीवीरसेनाचार्य हमें पवित्र करें । लौकिक ज्ञान और कविता ये दोनों गुण वीरसेन भट्टारकमें हैं। उनकी वाणी वृहस्पतिके पांडित्यको भी पराजित करती है । सिद्धान्तोंकी धवल जयधवल टीकाएं करनेवाले मेरे इन गुरुमहाराजके कोमल चरणकमल मेरे मनरूपी सरोवरमें चिरकाल तक ठहरें। उनकी धवला अर्थात् उज्ज्वल अथवा धवलाटीकासम्बन्धी वाणीको तथा चंद्रमाके समान निर्मल कीर्तिको जो कि सारे संसारको धवल कर रही है, मैं पुनःपुनः नमस्कार करता हूं। १. भट्टारकका लक्षण नीतिसारमें इस प्रकार लिखा है:. सर्वशास्त्रकलाभिज्ञो नानागच्छाभिवर्द्धकः। महामनाः प्रभाभावी भट्टारक इतीष्यते ॥ • अर्थात् जो सारे शास्त्रोंका और सारी कलाओंका जाननेवाला हो, अनेक गच्छोंका-बढ़ानेवाला हो, विचारशील और प्रभावशील हो, उसे भारक कहते हैं।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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