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________________ (११) सो समय दो कईसंघ नरपुराणकी जा काष्ठासंघके आद्यप्रवर्तक कुमारसेनाचार्य इन्हीं विनयसेनके शिप्य ये, जिन्होंने सन्याससे भ्रष्ट होकर फिर दीक्षा नहीं ली थी । यया आसी' कुमारसेणो नंदियढे विणयसेणदिक्खयो। सण्णासभंजणेण य अगहियपुणदिक्खो जाओ ।। सो समणसंघवज्जो कुमारसेणो हु समयमिच्छत्तो । चत्तोवसमो रुदो कटंसंघ पख्वदि ॥ ३८ ॥ जिनसेनस्वामीके विषयमें उत्तरपुराणकी प्रशस्तिमें लिखा है: अभवदिह हिमादेवसिन्धुप्रवाहो ध्वनिरिव सकलज्ञात्सर्वशास्त्रकमूर्तिः । उदयगिरतटाद्वा भास्करो भासमानः मुनिरनु जिनसेनो वीरसेनादमुप्मात् ।। अर्थात् जिस तरहसे हिमालयसे गंगानदीका प्रवाह निकलता है, अथवा सर्वज्ञदेवके शरीरसे उनकी दिव्यध्वनि होती है, किंवा उदयाचल पर्वतसे प्रकाशमान सूर्य उदय होता है, उसी प्रकारसे वीरसेनभगवानके पीछे सर्व शास्त्रोंकी मूर्तिके समान श्रीजिनसेनाचार्य हुए। - इसके सिवाय आदिपुराणकी प्रस्तावनामें स्वयं जिनसेन स्वामीने वीरसेनस्वामीको गुरु कहकर उनका बहुत ही गौरवके साथ स्मरण किया है । देखियेः१. संस्कृतछाया-आसीत्कुमारसेनो नन्दितटे विनयसेनदीक्षितः । सन्यासभंजनेन यः अगृहीतपुनःक्षो जातः ।। २. स श्रमणसंघवयंः कुमारसेनः खलु समयमिथ्यात्वी। त्यक्तोपशमो रुद्रः काष्टासंघ प्ररूपयति ॥ ३८
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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