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________________ (१५९) स्वामिसमन्तभद्राचार्य। सरस्वतीस्वैरविहारभूमयः समन्तभद्रप्रमुखा मुनीश्वराः । जयन्तु वाग्वज्रनिपातपातीपतीपराद्धान्तमहीधकोटयः॥ -श्रीवादीमसिंह। __ भगवान् समन्तभद्र विक्रमकी दूसरी शताब्दीके लगभग हो गये हैं । इनके समान स्याद्वाद नयके पारगामी आचार्य बहुत ही थोड़े हुए हैं। ... इनके समयके विषयमें बहुत मतभेद है । अभी तक कोई प्रमाण ऐसा नहीं मिला है जिस निश्चय पूर्वक कहा जा सके कि वे -- कब हुए हैं । महामहोपाध्याय पं० सतीशचन्द्र विद्याभूपण एम. ए. ने इनका समय ईस्वी सन् ६०० निश्चय किया है । परन्तु किन प्रमाणोंसे उन्होंने यह स्थिर किया है, जब तक यह मालूम न हो, तब तक हम जैनियोंकी पट्टावली आदिके अनुसार इन्हें विक्रमकी दूसरी शताब्दीका ही मानते हैं। श्रीकुन्दकुन्दाचार्यके पट्टपर प्रभाचन्द्र नामके एक आचार्य हो गये हैं। उन्होंने प्राकृत भाषामें समन्तभद्राचार्यका एक चरित्रअन्य लिखा है। वह अन्य वर्तमानमें अप्राप्य हो गया है, परन्तु उसका सारांश मल्लिषेण भट्टारकके शिष्य श्रीनेमिदत्त ब्रह्मचारीके --बनाये हुए आराधनासार कथाकोपमें मिलता है । पहले हम उसका चरित्रात्मक अंश ही यहांपर प्रगट करते हैं:
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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