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________________ (:१६०) स्वामि समन्तभद्र मैमूर प्रान्तस्य कांचीनगरीके रहनेवाले थे। उस समय कांबीदेशमें जैनधर्मका बहुत अच्छा प्रचार था । वहां बड़े २ विद्वान् और तपस्वी ऋषिमुनि विहार किया करते थे। उस समय तक वहां बौद्धधर्मका प्रवेश नहीं हुआ था । क्योंकि ऐसा उल्लेख मिलता है कि ईसाकी तीसरी शताब्दिम बौद्धभिक्षुक उस देशमें आये थे। परन्तु अन्य प्रान्तोंमें बौद्धधर्मका सासा प्रचार हो रहा था। उस प्रान्तमें ईसाकी तीसरी सदी लेकर जबतक भगवान् अकलंकदेवने अवतार लेकर जैनधर्मकी फिरसे विजय दुंदुभी नहीं वाई, तबतक बौद्धधर्म वरावर रहा हैं । अन्तु । स्वामीने गृहस्थधर्म धारण करके पीछे दीक्षा ली अयवा बाल्या. वस्याम ही दीक्षा ले ली, चरित्रनें इस बातका कुछ भी उल्लेख नहीं मिलता है। तो भी उनके सन्पूर्ण विषयोंके आश्चर्यकारक पांडित्यपर विचार करनसे यह कहा जा सकता है कि उन्हें शिक्षा बाल्यकालमें ही मिली होगी । दीक्षा लेनेके पश्चात् स्वामीने कांचीदेशने विहार करके जैनधर्मका बड़ा भारी उद्योत किया । परन्तु उसी समय उन्हें 'भस्मक व्याधि' नामका रोग हो गया । जिससे कि चाहे जितना खाया पिया जाय, सब भस्म हो जाता है और सुखकी वेदना वरावर वनी रहती है । इसके कारण मुनिधर्मका पालन करना असंभव हो गया । लाचार स्वानीको उस समय अपने चारित्र मार्गले च्युत हो जाना पड़ा । भूख शांत करनेके लिये उन्होंने यतिवेप त्याग दिया और साधारण साधुका वेष धारण करके मंत्रीशसे बाहर चल दिया।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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