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________________ छेदसुत्ताणि लव दूसरी उपासक प्रतिमा का वर्णन करते हैं वह सर्वधर्मरुचिवाला होता है यावत् यतिके दमों धर्मों का हड़ श्रद्धानी होता है । वह नियम से बहुत से भीलव्रत, गुणवत, प्राणातिपातादि-विरमण, प्रत्याख्यान और अनेक पापवोपवान का सम्यक् प्रकार परिपालक होता है, किन्तु वह सामायिक और देगावकाशिकवत का सम्यक् प्रतिपालक नहीं होता है। यह दूतरी उपासक प्रतिमा है। विशेषार्य-श्रावक स्थूल-प्रागातिपात-विरमण, स्थूल-मृपावाद-विरमग, न्यूल अदत्तादान विरमाण, न्यूल-मैथुन-विरमण (परस्त्री सेवन-परित्याग) और परि ग्रहपरिमाण, इन पांच अणुव्रतों का, दिन्वत, अनर्थ-दण्डव्रत और उपमोगपरिमोग परिमाण इन तीन गुणदतों का, तथा सामायिक, पौषधोपवास, देगावकाशिकन्नत और अतिथिसंविभागवत, इन चार शिक्षात्रतों का पालन करता है। इनमें से दूसरी प्रतिमा में पांच अणुव्रत और तीन गुणवत का निरतिचार पालन करना अत्यावश्यक है। शिक्षाव्रतों में से वह केवल सामायिक और देशावकाशिक व्रत का निरतिवार सम्यक् प्रकार से पालन नहीं करता है। इस प्रतिमा का काल एक-दो दिन से लगाकर दो मास का है। उसके पश्चात् • वह तीसरी प्रतिमा को स्वीकार करता है । सूत्र १६ (३) अहावरा तच्चा उवासग-पडिमासन्व-धम्म-रई या वि भवइ । तस्स गं वहूई सीलवय-गुणवय-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाई सम्म पट्टवियाई भवंति। ते णं सामाइयं देतावगालियं सम्म अणुमालित्ता भवइ । से णं चदसि -अमि-उद्दिष्ट-पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं नो सम्म अणुपालित्ता भव। से तं तच्चा उवासग-पडिमा। (३) दव तीसरी उपासक प्रतिमा का निरूपण करते हैं वह सर्वधर्मरुचिवाला यावत् पूर्वोक्त दोनों प्रतिमाओं का सम्यक् परिपालक होता है । वह नियम से बहुत से गीलत, गुणवत, पाप-विरमण, प्रत्याख्यान १ चवदानुदिट्टएएए ।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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