SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२ बहु भत्ताई अणसणाई छेवेज्जा ? हंता छेदेज्जा । छेदित्ता आलोइए पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवति । वह श्रमणोपासक होता है । जीवाजीव का ज्ञाता... यावत्... निर्ग्रन्थनिग्रन्थियों को प्रासुक एषणीय अशनादि देता हुआ जीवन बिताता है । इस प्रकार वह अनेक वर्षों तक रहता है । www प्रश्न - क्या वह रोग उत्पन्न होने या न होने पर भक्त प्रत्याख्यान करता है ? उत्तर - हां करता है । प्रश्न - क्या अनशन करता है ? उत्तर - हां करता है । वह आहार का त्याग करके आलोचना एवं प्रतिक्रमण द्वारा समाधि को प्राप्त होता है । जीवन के अन्तिम क्षणों में देह छोड़कर किसी देवलोक में देव होता है । छेवसुत्ताणि ― सूत्र ४६ एवं खलु समणाउसो ! तस्स नियाणस्स इमेयारूवे पाव - फलविवागे, जे गं नो संचाएति सव्वाओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । सूत्र ४७ हे आयुष्मान् श्रमणो ! उस निदान शल्य का यह पापरूप विपाक फल है कि वह गृहस्थ को छोड़कर एवं सर्वथा मुंडित होकर अनगार प्रव्रज्या स्वीकार नहीं कर सकता है । नवमं णियाणं एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते जाव से य परक्कममाणे दिव्व- माणुस एहि काम भोगेहि निव्वेयं गच्छेज्जा"माणुस्सा खलु काम-भोगा अधुवा, असासया, जाव- विप्पजहणिज्जा । दिव्वा वि खलु कामभोगा अधुवा जाव - पुणरागमणिज्जा ।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy