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________________ आयारदसा १५१ सूत्र ४४ तस्स णं तहप्पगारस्त पुरिसजायस्स वि जाव-पडिसुणिज्जा ? हंता ! पडिसुणिज्जा। से णं सद्दहेज्जा ? हंता ! सद्दहेज्जा। से गं सील-वय जाव-पोसहोववासाई पडिवज्जेज्जा ? हंता ! पडिवज्जेज्जा। से गं मुंडे भवित्ता आगारामो अणगारियं पन्वएज्जा? णो तिणळे समझें। प्रश्न- क्या ऐसे पुरुष को भी श्रमण-ब्राह्मण केवलिप्रज्ञप्त धर्म का उपदेश सुनाते है ? उत्तर-हां सुनाते हैं ? प्रश्न-क्या वह सुनता है ? उत्तर- हां वह सुनता है। प्रश्न- क्या वह श्रद्धा करता है। उत्तर-हां वह श्रद्धा करता है। प्रश्न-क्या वह शीलवत, पोषधोपवास स्वीकार करता है ? उत्तर-हां वह स्वीकार करता है। प्रश्न--क्या वह गृहस्थ को छोड़कर मुण्डित होता है एवं अनगार प्रव्रज्या स्वीकार करता है? उत्तर-यह संभव नहीं है। सूत्र ४५ से णं समणोवासए भवतिअभिगय-जीवाजीवे जाव-पडिलामेमाणे विहरइ । से णं एयारूवेण विहारेण विहरमाणे बहणि वासाणि समणोवासग-परियागं पाउणइ पाउणित्ता आबाहसि उप्पन्नंसि वा अणुप्पन्नसि वा बहुई भत्ताइ पच्चक्खाएज्जा? हंता, पच्चक्खाएज्जा,
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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