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________________ १५६ कय - कोउय-मंगल- पायच्छित्ता, कि ते ? छेदसुत्ताणि वर-पाय- पत्त - नेउरा, मणि मेखला - हार- रइय-: य-उवचिय- कडग- खड्डुग-1 तिसरय-वरवलय- हेमसूत्तय - कुंडल उज्जोयवियाणणा, रयण - विसूसियंगी, चीणां सुय-वत्य-पवरपरिहिया, दुगुल्ल - सुकुमाल - कंत - रमणिज्ज - उत्तरिज्जा, सव्वोउय सुरभि - कुसुम - सुंदर - रचित - पलंब - सोहण-कंत-विकसंत-चित्त-माला, वर-चंदण-चच्चिया, वराभरण- विभूसियंगी, कालागुरु-धूव- धूविया, सिरिसमाण वेसा, बहूह खुज्जाहि चिलातियाहि जाव - महत्तरगविंद - परिक्खित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाण - साला, जेणेव सेणियराया, तेणेव उवागच्छइ । - एगावलि-कंठसुत' - मरगय उस समय वह चेलणा देवी श्रेणिक राजा से यह संवाद सुनकर एवं अवधारण कर हर्षित संतुष्ट हो... यावत् मज्जन गृह में आई । वहाँ उसने स्नान किया कुल देव के सामने, नैवेद्य धरा, धूप किया, विघ्न शमनार्थ अपने भाल पर तिलक लगाया, कुलदेव को नमस्कार किया, तथा दुःस्वप्नों के प्रायश्चित्त के लिए दान-पुण्य किया | महारानी चेलणा का वर्णन कहाँ तक किया जाय ? उसने अपने सुकुमार पैरों में " नुपुर" कटि में मणियों से मण्डित मेखला ( कटिसूत्र ), गले में एकावली हार, हाथों में सोने के कड़े और श्रेष्ठ कंकण, अंगुलियों में मुद्रिकाएँ तथा कण्ठ से लेकर उरोजों तक मरकत मणियों से निर्मित तिसिराहार पहना । कानों में पहने हुए कुण्डलों से उसका आनन उद्योतित था । श्रेष्ठ आभरणों एवं रत्नों से वह विभूषित थी । सर्वश्रेष्ठ चीनांशुक एवं सुन्दर सुकोमल वल्कल का रमणीय उत्तरीय धारण किये हुए थी । सब ऋतुओं के विकसित सुन्दर सुगंधित सुमनों से रचित विचित्र मालाएं पहने हुए थीं । १ कंठमुरज - तिसरय । काला गुरु धूप से धूपित हो वह लक्ष्मी के समान सुशोभित वेषभूषा वाली चेलना अनेक खोजे तथा चिलातादि देशों की दासियों के वृन्द से वेष्टित होकर उपस्थान शाला में श्रेणिक राजा के समीप आई ।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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