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________________ १३४ छेवसुत्ताणि निर्ग्रन्थियों को अवग्रह क्षेत्र से बाहर जाना नहीं कल्पता है । यह उत्सर्ग विधान है। स्थानांग अ० ५ उद्दे० २ सूत्र ४१३ में पांच कारणों से प्रथम प्रावट (वर्षा ऋतु) में ग्रामानुग्राम विहार करने का विधान किया गया है उनमें एक कारण यह है कि आचार्य या उपाध्याय की सेवा के लिए वर्षावास क्षेत्र से बाहर जहां वे हों, वहां जाना कल्पता है। चाहे वे वर्षावास क्षेत्र से कितनी ही दूर पर क्यों न हो। यह अपवाद विधान है। __इस अपवाद सूत्र में विशेष विधान यह है कि किसी एक ग्लान भिक्षु की चिकित्सा के लिए आवश्यक औषधि यदि वर्षावास क्षेत्र में उपलब्ध न हो, पर आस-पास के किसी गांव में उपलब्ध हो तो औपधि लाने के लिए भिक्ष चारपांच योजन तक जा सकता है। चलते-चलते यदि थक जाए तो विश्राम लेने के लिए मार्ग में रह सकता है। इसी प्रकार आते समय भी मार्ग में एक रात्रि का विश्राम ले सकता है। किन्तु जिस ग्राम में औषधि उपलब्ध हो वहां से वह औषधि लेकर उसी दिन लौट आए । वहां वह रात न रहे। समाचारी-फलनिरूपणम् सूत्र ७६ इच्चेइयं संवच्छरियं थेरकप्पं अहासुतं अहाकप्पं महामग्गं सम्मं कारण फासित्ता पालिता सोभित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आराहित्ता आणाए अणुपालित्ता____ अत्यंगइया समणा निरगंथा तेणेव भवग्गहणणं सिझंति बुमति मुच्चंति परिनिव्वाइंति सव्वदुक्खाणमंतं करंति । ___अत्येगइया दुच्चेणं भवग्गहणेणं सिझति बुसंति मुचंति परिनिव्वाइंति सव्वदुक्खाणमंतं करंति। अत्येगइया तच्चेणं भवग्गहणेणं सिझति बुझंति मुच्चंति परिनिव्वाईति सव्वदुक्खाणमंतं करंति। सत्त? भवग्गहणाई पुण नाइक्कमति । ८/७६ । अट्ठाईसवीं फल समाचारी जो इस सांवत्सरिक स्थविरकल्प का सूत्र, कल्प और मार्ग के अनुसार सम्यक् प्रकार काया से स्पर्श कर पालन कर अतिचारों का शोधन कर जीवन
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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