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________________ मायारदसा (क्षमा याचना करने वाले को) क्षमा प्रदान करनी चाहिए । स्वयं को उपशान्त होना चाहिए और (प्रतिपक्षी) को भी उपशान्त करना चाहिए । सरल एवं शुद्ध मन से बार-बार कुशल क्षेम पूछना चाहिए। जो उपशान्त होता है उसकी ही धर्माराधना सफल होती है । जो उपशान्त नहीं होता है उसकी धर्माराधना सफल नहीं होती है । इसलिए स्वयं को उपशान्त होना ही चाहिए। प्रश्न-हे भगवन् ! आपने ऐसा क्यों कहा ? उत्तर-उपशान्त होना ही साधुता है। उपाश्रयत्रय-संख्या स्वरूपा पञ्चविंशतितमी समाचारी सूत्र ७३ वासावासं पज्जोसवियाणं निग्गंथाण वा, निग्गंथीण वा तमो उवस्सया गिहितए, तं जहा१ वेउन्चिया पडिलेहा, २ साइज्जिया, ३ पमज्जणा । ८/७३ । पचीसवीं उपाश्रय त्रय समाचारी वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को तीन उपाश्रय ग्रहण करना चाहिए, यथा इनमें से दो उपाश्रयों की प्रतिदिन प्रतिलेखना करनी चाहिए और एक उपाश्रय (जिसमें निर्ग्रन्थ या निर्गन्थियों को वर्षाकाल की समाप्ति तक रहना है) की प्रतिदिन प्रमार्जना करनी चाहिए । ८-७३ विशेषार्थ-वर्षाकाल में प्रायः जीवों की उत्पत्ति अधिक हो जाती है । अतः सम्भव है जिस उपाश्रय में निग्रंन्य या निर्गन्थियों ठहरे हुए हों उसमें भी कुंथुवे आदि सूक्ष्म जन्तुओं की उत्पत्ति हो जावे या बाढ़ आदि से वह उपाश्रय क्षत-विक्षत हो जावे तो अन्य दो उपाश्रयों में से किसी एक उपाश्रय में जाकर वे रह सकते हैं। इसलिए इस सूत्र में तीन उपाश्रय ग्रहण करने का विधान है। क्योंकि वर्षाकाल के पूर्व गृहस्थ की आजा लेकर जितने उपाश्रय ग्रहण किए हैं। विशेष कारण उपस्थित होने पर उनमें ही वर्षावास रहने के लिए जा सकते हैं। अन्य में नहीं।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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