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________________ १३० दिसुत्ताणि अधिकरणानुदीरण निरूपिका त्रयोविंशतितमी समाचारी सूत्र ७१ ____ वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंयाण वा निगंयोण वा परं पज्जोसवागायो अहिगरणं वइत्तए। जो णं निगंयो वा, निग्गंयो वा परं पन्जोसवणालो अहिगरणं वयइसे णं "अकप्पे गं अन्जो ! वयसीति" वत्तव्ये सिया। ___जो णं निग्गंयो वा, निगंयो वा परं पज्जोसवणाए अहिगरणं वयइसे णं निज्जूहियव्वे सिया । ८/७१ । तेइसवी अधिकरण अनुदीरण समाचारी वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ-निर्गन्थियों को आषाढ़ पूर्णिमा से एक मास और वीसवीं रात्री व्यतीत होने के बाद पूर्व वर्ष में हुए अविकरण (कलह) को पुनः कहना कल्पता नहीं है। ____ जो निम्रन्य या निर्ग्रन्यी आपाढ़ पूर्णिमा ने एक मात्र बोर वीसवीं रात्री के बाद पूर्व वर्ष में हुए अधिकरण को कहता है तो उसे कहना चाहिए कि "हे आर्य ! पूर्व वर्ष में हुए अधिकरण को कहना तुम्हें कल्लता नहीं हैं" इतना कहने पर भी जो निर्जन्य-निम्रन्यी पूर्व वर्ष में हुए अधिकरण को कहता है उसे संघ से निकाल देना चाहिए ।८-७१ परस्पर क्षामणाविधि रूपा चतुर्विंशतितमी समाचारी सूत्र ७२ वातावासं पन्जोतवियाणं इह खलु निग्गंयाण वा, निग्गयोण वा अज्जेव कक्खडकडुए बुग्गहे समुप्पज्जिज्जा। खमियन्वं खमावियन्वं, उवसनियत्वं उवसमावियन्वं, सुमइ संपुच्छणा बहुलेणं होयन्वं । जो उवसमइ तत्त अत्यि आराहणा, जो न उवसमइ तस्त नत्यि आराहणा । तम्हा सप्पणा चेव उवसमियन्वं । ते किमाहु भंते ! "उवत्तमसारं खु सामगं ।" ८/७२ । चौवीसवीं परस्पर क्षमापना समाचारी वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्य-निर्गन्थियों में जित दिन कर्कश कटु वचनों से विग्रह (कलह) हुआ हो उन्हें उसी दिन जमा याचना करनी चाहिए नौर
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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