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________________ आयारदसा १२७ वर्षा काल के समान हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में तीन उच्चार-प्रश्रवण भूमियों की प्रतिलेखना करना आवश्यक नहीं है। प्र०-हे भगवन् ! आपने ऐसा क्यों कहा? उ०-वर्षा ऋतु में प्रायः सर्वत्र त्रस प्राणी बीज पनक और हरे अंकुर पैदा हो जाते हैं। मात्रक त्रितय-ग्रहणरूपा एकविंशतितमी समाचारी सूत्र ६६ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंयाण वा, निग्गंथीण वा तो मत्तगाई गिण्हित्तए, तं जहा१ उच्चारमत्तए, २ पासवणमत्तए, ३ खेलमत्तए ।८/६९। इक्कीसवीं तीन मात्रक ग्रहणरूपा समाचारी वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ-निर्गन्थियों को तीन मात्रक ग्रहण करने कल्पते हैं, यथा १. उच्चार मात्रक मल त्याग के लिए एक पान, २. प्रश्रवण मात्रक= मूत्र त्याग के लिए एक पात्र, ३. श्लेष्म मात्रक कफ त्याग के लिए एक पात्र । विशेषार्थ-वर्षाकाल में प्रायः सर्वत्र सं प्राणी वीज पनक और हरे अंकुर उत्पन्न हो जाने के कारण मल-मूत्रादि त्यागने के लिए तीन उच्चार-प्रश्रवण भूमियों का विधान पूर्व सूत्र में किया गया है, किन्तु रात्री का समय हो और वर्षा बहुत जोर से बरस रही हो, उस समय यदि मल-मूत्रादि का त्याग करना हो तो रात्री के घनान्धकार में उच्चार-प्रश्रवण भूमि तक 'भिक्षु कैसे पहुंचे ? तथा मल-मूत्रादि के वेग को रोकने का भी आगमों में सर्वथा निषेध है क्योंकि मल-मूत्रादि के वेग को रोकने से अनेक प्राण-घातक व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं इसलिए इस सूत्र में इन तीन मात्रकों (पात्र) के रखने का विधान किया गया है। वर्षाकाल में एक बड़े बरतन में राख, रेत या चूना विपुल परिमाण में रखना चाहिए । मल और कफ त्यागने के मात्रक में मल या कफ त्यागने के पूर्व राख, रेत या चूना डालकर ही मल या कफ त्याग करना चाहिए । मल या कफ त्यागने के बाद भी उन पर राख रेत या चूना अवश्य डालना चाहिए जिससे सम्मूछिम जीवों की उत्पत्ति न हो। प्रातःकाल होने पर, वर्षा रुकने पर मल
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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