SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वैभव का अपहरण कर लेते हैं, कभी राजा उसको छीन लेता है और कभी वह घर-दहन में जला दिया जाता है (37) । धन-वैभव का नाश कुछ मनुष्यों को प्राध्यात्मिक प्रेरणा देकर उनको आत्मजागृति की स्थिति में लाने के लिए समर्थ हो सकता है। इस तरह से जब मूच्छित मनुष्य को संसार की निस्सारता का भान होने लगता है (61), तो उसकी मूर्छा की सघनता धीरे-धीरे कम होती जाती है और वह अध्यात्म-मार्ग की ओर चल पड़ता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि यदि अध्यात्म में प्रगति किया हुआ व्यक्ति मिल जाए, तो भी मूच्छित मनुष्य जागृत स्थिति में छलांग लगा सकता है (93)। इस तरह से बुढ़ापा, मृत्यु, धन-वैभव का नाश, संसार की निस्सारता और जागृत मनुष्य के दर्शन-ये सभी मूच्छित मनुष्य को प्राध्यात्मिक प्रेरणा देकर उसमें स्व-अस्तित्व का वोध पैदा कर सकते हैं। आन्तरिक रूपान्तरण और साधना के सूत्र : यात्म-जागृति अथवा स्व-अस्तित्व के वोध के पश्चात् आचारांग मनुप्य को चारित्रात्मक आन्तरिक रूपान्तरण के महत्त्व को बतलाते हुए साधना के ऐसे सारभूत सूत्रों को बतलाता है जिससे उसकी साधना पूर्णता को प्राप्त हो सके। कहा है कि हे मनुष्य ! तू ही तेरा मित्र है (66), तू अपने मन को रोक कर जी (61)। जो सुन्दर चित्तवाला है, वह व्याकुलता में नहीं फँसता है (68)। तू मानसिक विषमता (राग-द्वेप) के साथ ही युद्ध कर, तेरे लिए बाहरी व्यक्तियों से युद्ध करने से क्या लाभ (99) ? बंध (अशांति) और मोक्ष (शान्ति) तेरे अपने मन में ही है (97) । धर्म न गाँव में होता है और न जंगल में, वह तो एक प्रकार का आन्तिरिक रूपान्तरण है (96)। कहा गया है कि जो ममतावाली वस्तु-बुद्धि को चयनिका ]
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy