SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय अंक। ४७ राग सारग। हरिजन निशदिन मौज उड़ावें ॥ टेक ॥ मलय मनोहर केशर लेकर, सीस कपोल भुजा लिपटावें। कर्णकुहर कस्तूरीपूरित, हृदय गुलाल लाल विखरावें ॥१॥ एला ताम्बूलादिक खाकर, मुख रँगि रुचिर सुगंधि उड़ावें। (अंजनमय खंजनसे दृगपर, मदनवान धरि तान चलाचें)॥२॥ आधीरात बजाय गायके, राग रंगमें रंगे गमा। गृहवासिनकी नारिनके फिर, लिपटि गलेसों शेप वितावै॥३॥ फिर इनके आचरणकी परीक्षा क्या करोगी? जैसे देव वैसे ही उनके भक्त । जहां देव स्वयं अपनी स्त्रियां भक्तजनोंको देते हैं, वहां भक्तजन उन स्त्रियोंको कैसे ग्रहण नहीं करें? -- [इस प्रकार शान्ति और क्षमा सम्पूर्ण मतीकी परीक्षा करके दिगम्बर शासनमें आई और वहा उन्होंने शास्त्रगता परीक्षाके दर्शन किये ।] [पटाक्षेप] न श्रीवादिचन्द्रसूरिविरचिते श्रीज्ञानसूर्योदयनाटके द्वितीयोऽङ्कः समाप्तः। - - १ चञ्चच्चन्दनकेशरावितभुजाशीर्षप्रगण्डस्थलाः । संराजन्मृगनाभिकर्णकुहरा हृद्योच्छलचूर्णकाः॥ प्रेवन्पर्णसुरंगरागवदना नीत्वार्द्धरात्रं पुनः। शेपार्द्ध गमयन्ति वैष्णवजना दारैर्मुदा गेहिनाम् ।।
SR No.010766
Book TitleGyansuryodaya Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy