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________________ द्वितीय अक। मनभर माटीसों नहीं, शत घट जलमों नाहिं। कोटि तीर्थसों हू नहीं, पाप पखारे जाहि ॥ तब इस मतमें दयाकी संभावना नहीं हो सकती । कहीं दूसरी जगह खोज करना चाहिये। {दोनों आगे चलनी है कि, एक ओर बैठा हुआ नैयायिक दिखाई देता है] शान्ति-(विन्मित होकर ) यह विप्र कौन है ? क्षमा-यह श्वेतमजमालभेत भूतिकामः अर्थात् “विभूलेके-सम्पत्तिके चाहनेवाले पुरुषको सफेद वकरेका वध करना चाहिये" इस वाक्यको प्रमाण माननेवाला नैयायिक है। शान्ति-अच्छा तो चलो समीप चलके सुनें, कि यह किस पक्षका पोषण करता है। नयायिक-हाथमे न्यायको पुन्ना लिये हुए अपने विद्यार्थियोंको मटाना है । विद्यार्थी पढते है।) ___ एक विद्यार्थी-"जगतः कर्ता शिव एकः।" अर्थात् जगत्का का एक शिव है। __ दूसरा वि०-नवानामात्मविशेषगुणानां समुच्छेदो मोक्षः अर्थात् आत्माके सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, अधर्म, धर्म, ज्ञान और संस्कार इन नौ विशेष गुणोंके अभावको मोक्ष कहते हैं। ___ तीसरा वि०-याज्ञीहिंसा अधर्मसाधिका हिंस्यत्वात् क्रतुवाह्यहिंसावदित्यादौ निषेधत्वमुपाधिः । अर्थात् ऐसा १ मृदो भारसहस्रेण जलकुम्भशनेन च । न गुड्यन्ति दुराचाराः स्नानास्तीर्थशतप्वपि ॥
SR No.010766
Book TitleGyansuryodaya Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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