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________________ ज्ञानसूर्योदक नाटक । विंक (चिड़ा), वर्षा के लिये तीतर, शरदके लिये वर्तिका (बतक) हेमन्तके लिये ककर, और शिशिरके लिये विकिर अर्थात् पक्षी मात्र हनन करना चाहिये । समुद्र के लिये शिशुमार (एक जातिकी मछली), पर्जन्यके (मेघके) लिये मेंडक मरुत्के लिये मच्छ, मित्रके लिये कुलीपय और वरुणके लिये चक्रवाकका होम करना' चाहिये ।" और, "मदिरा तीन प्रकारकी है । पैष्टी, गौड़ी, और माध्वी । सो सुत्रामण यज्ञमें सुरा पीना चाहिये, और सोमपान करना चाहिये।" [शान्ति मूर्छित होती है ] क्षमा-(कानोंको हायसे वन्द करके) प्यारी बेटी! उठ, यहां एक मुहूर्त मात्र ठहरना भी उचित नहीं है। क्योंकि ऐसे हिंसक वचनोंके सुननेसे पूर्वका संचय किया हुआ भी पुण्य नष्ट हो जाता है। शान्ति-( उठकर) मातः! जो सोमपान करते है, उनके गंगा खानसे क्या और “ओं भूः ओं भुवः ओं स्वः ओं महः ओं जनः ओं तपः ओं सत्यम् ओं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य' धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्" इस प्रकार गायत्रीमंत्रका पाठ करनेसे क्या? क्षमा-निस्सन्देह, इनका धर्माचरण बड़ा भयानक है । इनके संसर्ग करनेसे लोगोंके समीप पुण्य कर्म तो खड़ा भी नहीं रहता होगा। शान्ति-क्या ये पापी इन प्रसिद्ध वचनोको नहीं जानते है कि १ भाषाकारोंने इसका अर्थ वटेर पक्षी लिखा है।
SR No.010766
Book TitleGyansuryodaya Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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