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________________ RSSIAS नमः सिद्धेभ्यः श्रीवादिचन्द्रसूरिविरचित ज्ञानसूर्योदय नाटक। (भाषानुवाद) [स्थान-गभूमि । नादी मगलपाठ पढता हुआ आता है। भापाकारका मंगलाचरण । रोला। ज्ञानसूर्यको उदय कियो अति सदय हृदय करि। सौख्य शांतियुत किये जगतजन, मोहतिमिर हरि ।। मुक्त किये भवि-भ्रमर खोलि संपुट सरोज विधि । नमो नमो जिनदेव देव देवनिके बहुविधि ॥१॥ मूलक का मंगलाचरण। वीर-सवैया ( ३१ मात्रा) पंचवरनमयमूर्ति मनोहर, विशद अनादि अनन्त अनूप । हिमा महत जगतमें सुविदित, प्रनमों ओंकार चिद्रूप ॥ १ मूलग्रन्थकताका मगलाचरण सस्कृतमें इसप्रकार है, अनाद्यनन्तरूपाय पञ्चवर्णात्ममूर्तये। अनन्तमहिमाप्ताय सदौबार नमोस्तु ते ॥१॥ तस्मादभिन्नरूपस्य वृषभस्य जिनेशितुः। नत्वा तस्य पदाम्भोज भूपिताखिलभूतलम् ॥२॥
SR No.010766
Book TitleGyansuryodaya Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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