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________________ श्रीमद् राजचन्द्र ११ सब प्राणियोंमें समदृष्टि,१२ अथवा किसी प्राणीको जीवितव्य रहित नहीं करना, शक्तिसे अधिक उनसे काम नहीं लेना। १३ अथवा सत्पुरुष जिस रस्तेसे चले वह । १४ मूलतत्त्वमें कहीं भी भेद नहीं, मात्र दृष्टिमें भेद है, यह मानकर आशय समझ पवित्र धर्ममें प्रवर्तन करना। १५ तू किसी भी धर्मको मानता हो, उसका मुझे पक्षपात नहीं, मात्र कहनेका तात्पर्य यह है कि जिस राहसे संसार-मलका नाश हो उस भक्ति, उस धर्म और उस सदाचारको तू सेवन करना। १६ कितना भी परतंत्र हो तो भी मनसे पवित्रताको विस्मरण किये विना आजका दिन रमणीय करना। १७ आज यदि तू दुष्कृतमें प्रेरित होता हो तो मरणको याद कर । १८ अपने दुःख-सुखके प्रसंगोंकी सूची, आज किसीको दुःख देनेके लिये तत्पर हो तो स्मरण कर । १९ राजा अथवा रंक कोई भी हो, परन्तु इस विचारका विचार कर सदाचारकी ओर आना कि इस कायाका पुद्गल थोड़े वक्तके लिये मात्र साढ़े तीन हाथ भूमि माँगनेवाला है। २० तू राजा है तो फिकर नहीं, परन्तु प्रमाद न कर । कारण कि नीचसे नीच, अधमसे अधम, व्यभिचारका, गर्भपातका, निर्वशका, चांडालका, कसाईका और वेश्या आदिका कण तू खाता है। तो फिर ! २१ प्रजाके दुख, अन्याय और कर इनकी जाँच करके आज कम कर । तू भी हे राजन् ! कालके घर आया हुआ पाहुना है। २२ वकील हो तो इससे आधे विचारको मनन कर जाना । २३ श्रीमंत हो तो पैसेके उपयोगको विचारना । उपार्जन करनेका कारण आज दूंदकर कहना । २४ धान्य आदिमें व्यापारसे होनेवाली असंख्य हिंसाको स्मरणकर न्यायसंपन्न व्यापारमें आज अपना चित्त खींच। २५ यदि तू कसाई हो तो अपने जीवके सुखका विचार कर आजके दिनमें प्रवेश कर। २६ यदि तू समझदार बालक हो तो विद्याकी ओर और आज्ञाकी ओर दृष्टि कर । २७ यदि तू युवा हो तो उद्यम और ब्रह्मचर्यकी ओर दृष्टि कर । २८ यदि तू वृद्ध हो तो मौतकी तरफ़ दृष्टि करके आजके दिनमें प्रवेश कर । २९ यदि तू स्त्री हो तो अपने पतिके ओरकी धर्मकरणीको याद कर, दोष हुए हों तो उनकी क्षमा माँग और कुटुम्बकी ओर दृष्टि कर । ३० यदि तू कवि हो तो असंभवित प्रशंसाको स्मरण कर आजके दिनमें प्रवेश कर । ३१ यदि तू कृपण हो तो,-(अपूर्ण) ३२ यदि तू सत्तामें मस्त हो तो नेपोलियन बोनापार्टको दोनों स्थितिसे स्मरण कर । ३३ कल कोई कृत्य अपूर्ण रहा हो तो पूर्ण करनेका सुविचार कर आजके दिनमें प्रवेश कर । ३४ आज किसी कृत्यके आरंभ करनेका विचार हो तो विवेकसे समय शक्ति और परिणामको विचार कर आजके दिनमें प्रवेश करना ।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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