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________________ श्रीमद् राजचन्द्र .. १६वें वर्षसे पहले पुष्पमाला ___ॐ सत् १ रात्रि व्यतीत हुई, प्रभात हुआ, निद्रासे मुक्त हुए । भाव-निद्रा हटानेका प्रयत्न करना । २ व्यतीत रात्रि और गई जिन्दगीपर दृष्टि डाल जाओ। ३ सफल हुए वक्तके लिये आनंद मानो, और आजका दिन भी सफल करो। निष्फल हुए दिनके लिये पश्चात्ताप करके निष्फलताको विस्मृत करो। ४ क्षण क्षण जाते हुए अनंतकाल व्यतीत हुआ तो भी सिद्धि नहीं हुई। ५ सफलताजनक एक भी काम तेरेसे यदि न बना हो तो फिर फिर शरमा । ६ अघटित कृत्य हुए हों तो शरमा कर मन, वचन और कायाके योगसे उन्हें न करनेकी प्रतिज्ञा ले। ७ यदि तू स्वतंत्र हो तो संसार-समागममें अपने आजके दिनके नीचे प्रमाणसे भाग बना । १ पहर--भक्ति-कर्तव्य १पहर-धर्म-कर्तव्य १ पहर-आहार-प्रयोजन १ पहर-विद्या-प्रयोजन २ पहर-निद्रा २ पहर-संसार-प्रयोजन ८ यदि तू त्यागी हो तो त्वचाके विना वनिताका स्वरूप विचारकर संसारकी ओर दृष्टि करना। ९ यदि तुझे धर्मका अस्तित्व अनुकूल न आता हो तो जो नीचे कहता हूँ उसे विचार जाना। तू जिस स्थितिको भोगता है वह किस प्रमाणसे ! आगामी कालकी बात तू क्यों नहीं जान सकता ! तू जिसकी इच्छा करता है वह क्यों नहीं मिलता ! चित्र-विचित्रताका क्या प्रयोजन है ! १० यदि तुझे अस्तित्व प्रमाणभूत लगता हो और उसके मूलतत्त्वकी आशंका हो तो नीचे कहता हूँ।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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