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________________ पुष्पमाला ३५ पग रखनेमें पाप है, देखनेमें जहर है, और सिरपर मरण खड़ा है; यह विचारकर आजके दिनमें प्रवेश कर । ३६ अघोर कर्म करनेमें आज तुझे पड़ना हो तो राजपुत्र हो, तो भी भिक्षाचरी मान्य कर आजके दिनमें प्रवेश करना । ३७ भाग्यशाली हो तो उसके आनंदमें दूसरोंको भाग्यशाली बनाना, परन्तु दुर्भाग्यशाली हो तो अन्यका बुरा करनेसे रुक कर आजके दिनमें प्रवेश करना । ३८ धर्माचार्य हो तो अपने अनाचारकी ओर कटाक्ष दृष्टि करके आजके दिनमें प्रवेश करना। ३९ अनुचर हो तो प्रियसे प्रिय शरीरके निभानेवाले अपने अधिराजकी नमकहलाली चाहकर आजके दिनमें प्रवेश करना। ४० दुराचारी हो तो अपनी आरोग्यता, भय, परतंत्रता, स्थिति और सुख इनको विचार कर आजके दिनमें प्रवेश करना ।। ४१ दुखी हो तो आजीविका (आजकी) जितनी आशा रखकर आजके दिनमें प्रवेश करना। १२ धर्मकरणीका अवश्य वक्त निकालकर आजकी व्यवहार-सिद्धिमें तू प्रवेश करना। ४३ कदाचित् प्रथम प्रवेशमें अनुकूलता न हो तो भी रोज जाते हुए दिनका स्वरूप विचार कर आज कभी भी उस पवित्र वस्तुका मनन करना। ४४ आहार, विहार, निहारके संबंधमें अपनी प्रक्रिया जाँच करके आजके दिनमें प्रवेश करना । ४५ तू कारीगर हो तो आलस और शक्तिके दुरुपयोगका विचार करके आजके दिनमें प्रवेश करना। ४६ तू चाहे जो धंधा करता हो, परन्तु आजीविकाके लिये अन्यायसंपन्न द्रव्यका उपार्जन नहीं करना। ४७ यह स्मरण किये बाद शौचक्रियायुक्त होकर भगवद्भक्तिमें लीन होकर क्षमा माँग । ४८ संसार-प्रयोजनमें यदि तू अपने हितके वास्ते किसी समुदायका अहित कर डालता हो तो अटकना। ४९ जुल्मीको, कामीको, अनाड़ीको उत्तेजन देते हो तो अटकना। ५० कमसे कम आधा पहर भी धर्म-कर्तव्य और विद्या-संपत्तिमें लगाना । ५१ जिन्दगी छोटी है और लंबी जंजाल है, इसलिये जंजालको छोटी कर, तो सुखरूपसे जिन्दगी लम्बी मालूम होगी। ५२ स्त्री, पुत्र, कुटुम्ब, लक्ष्मी इत्यादि सभी सुख तेरे घर हों तो भी इस सुखमें गौणतासे दुख है ऐसा समझकर आजके दिनमें प्रवेश कर । ५३ पवित्रताका मूल सदाचार है। ५४ मनके दुरंगी हो जानेको रोकनेके लिये,—(अपूर्ण) ५५ वचनोंके शांत मधुर, कोमल, सत्य और शौच बोलनेकी सामान्य प्रतिज्ञा लेकर आजके दिनमें प्रवेश करना । ५६ काया मल-मूत्रका अस्तित्व है, इसलिये मैं यह क्या अयोग्य प्रयोजन करके आनंद मानता हूँ! ऐसा आज विचारना।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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