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________________ ६४३] उपदेश-छाया - असार मान जन्म, जरा, मरणको महा भयंकर समझ वैराग्य प्राप्त कर आँसू आ जॉय-वह उत्तम है। अपना पुत्र मर जाय और रोने लगे, तो इसमें कोई विशेषता नहीं, वह तो मोहका कारण है। . . ... आत्मा पुरुषार्थ करे तो क्या नहीं हो सकता ! इसने बड़े बड़े पर्वतके पर्वत काट डाले हैं, और कैसे कैसे विचारकर उनको रेलवेके काममें लिया है । यह तो केवल बाहरका काम है, फिर भी विजय प्राप्त की है । आत्माका विचार करना, यह कुछ बाहरकी बात नहीं । जो अज्ञान है उसके दूर होनेपर ज्ञान होता है। . .. .. अनुभवी वैद्य दवा देता है, परन्तु. यदि रोगी उसे गलेमें उतारे तो ही रोग मिटता है। उसी तरह सद्गुरु अनुभवपूर्वक ज्ञानरूप दवा देता है, परन्तु उसे मुमुक्षु ग्रहण करनेरूप गले उतारे तो ही मिथ्यात्वरूप रोग दूर होता है।। दो घड़ी पुरुषार्थ करे तो केवलज्ञान हो जाय-ऐसा कहा है। रेलवे इत्यादि, चाहे कैसा भी पुरुषार्थ क्यों न करें तो भी दो घड़ीमें तैय्यार होती नहीं, तो फिर केवलज्ञान कितना सुलभ है, इसका विचार तो करो। जो बातें जीवको शिथिल कर डालती हैं—प्रमादी कर डालती हैं, वैसी बातें सुनना नहीं। इसीके कारणं जीव अनादिकालसे भटका है । भव-स्थिति काल आदिका आलंबन लेना नहीं । ये सब बहाने हैं । .. जीवको सांसारिक आलंबन-विडम्बनायें-छोड़ना तो है नहीं, और वह मिथ्या आलंबन लेकर कहता है कि कर्मके दल मौजूद हैं इसलिये मेरेसे कुछ बन नहीं सकता। ऐसे आलंबन लेकर जीव पुरुषार्थ करता नहीं । यदि वह पुरुषार्थ करे और भवस्थिति अथवा काल रुकावट डालें तो उसका उपाय हम कर लेंगे, परन्तु पहिले तो पुरुषार्थ करना चाहिये। - सत्पुरुषकी आज्ञाका आराधन करना भी परमार्थरूप ही है। उसमें लाभ ही है । यह व्यापार लाभका ही है। जिस आदमीने लाखों रुपयोंके सामने पीछा फिरकर देखा नहीं, वह अब जो हज़ारके व्यापारमें बहाना निकालता है, उसका कारण यही है कि अंतरसे आत्मार्थकी इच्छा नहीं है । जो आत्मार्थी हो गया है वह पीछा फिरकर देखता नहीं-वह तो पुरुषार्थ करके सामने आ जाता है। शास्त्रमें कहा है कि आवरण, स्वभाव, भवस्थिति कब पकती हैं ! तो कहते हैं कि जब पुरुषार्थ करे तब । पाँच कारण मिल जॉय तो मुक्ति हो जाय। पाँचों कारण पुरुषार्थमें अन्तर्हित हैं। अनंत चौथे आरे मिल जाय, परन्तु यदि स्वयं पुरुषार्थ करे तोही मुक्ति प्राप्त होती है । जीवने अनंत कालसे पुरुषार्थ किया नहीं। समस्त मिथ्या आलंबनोंको लेकर मार्गमें विघ्न डाले हैं। कल्याण-वृत्ति उदित हो तब भवस्थिति परिपक हुई समझनी चाहिये । शूरता हो तो वर्षका काम दो घड़ीमें किया जा सकता है । प्रश्नः-व्यवहारमें चौथे गुणस्थानमें कौन कौन व्यवहार लागू होता है ! शुद्ध न्यवहार या और कोई . .. उत्तर:-"-उसमें दूसरे सभी व्यवहार लागू होते हैं । उदयसे शुभाशुभ व्यवहार होता है, और परिणतिसे शुद्ध व्यवहार होता है। . . . . . . . .
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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