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________________ श्रीमद् राजचन्द्र [ ६४३ जीव अहंकार रखता है, असत् वचन बोलता है, भ्रान्ति रखता है, उसका उसे बिलकुल भी भान नहीं । इस भानके हुए बिना निस्तारा होनेवाला नहीं । शुरवीर वचनोंको दूसरा एक भी वचन नहीं पहुँचता। जीवको सत्पुरुषका एक शब्द भी समझमें नहीं आया। बड़प्पन रुकावट डालता हो तो उसे छोड़ देना चाहिये । कदाग्रहमें कुछ भी हित नहीं । हिम्मत करके आग्रह-कदाग्रहसे-दूर रहना चाहिये, परन्तु विरोध करना चाहिये नहीं। जब ज्ञानी-पुरुष होते हैं, तब मतभेद कदाग्रह घटा देते हैं । ज्ञानी अनुकंपाके लिये मार्गका बोध करता है । अज्ञानी कुगुरु जगह जगह मतभेदको बढ़ाकर कदाग्रहको सतर्क कर देते हैं । सच्चे पुरुष मिलें और वे जो कल्याणका मार्ग बतावें उसीके अनुसार जीव आचरण करे, तो अवश्य कल्याण हो जाय । मार्ग विचारवानसे पूछना चाहिये । सत्पुरुषके आश्रयसे श्रेष्ठ आचरण करना चाहिये । खोटी बुद्धि सबको हैरान करनेवाली है, वह पापकी करनेवाली है । जहाँ ममत्व हो वहीं मिथ्यात्व है । श्रावक सब दयालु होते हैं। कल्याणका मार्ग एक होता है, सौ दोसौ नहीं होते । भीतरका दोष नाश होगा, और सम-परिणाम आवेगा, तो ही कल्याण होगा। जो मतभेदका छेदन करे वही सत्पुरुष है । जो सम-परिणामके रास्ते चढ़ावे वही सत्संग है। विचारवानको मार्गका भेद नहीं । हिन्दू और मुसलमान समान नहीं हैं । हिन्दुओंके धर्मगुरु जो धर्म-बोध कह गये थे, वे उसे बहुत उपकारके लिये कह गये थे। वैसा बोध पीराणा मुसलमानोंके शास्त्रोंमें नहीं। आत्मापेक्षासे तो कुनबी, बनिये, मुसलमान कुछ भी नहीं हैं । उसका भेद जिसे दूर हो गया वही शुद्ध है; भेद भासित होना, यही अनादिकी भूल है । कुलाचारके अनुसार जो सच्चा मान लिया, वही कषाय है। प्रश्नः-मोक्ष किसे कहते हैं ! उत्तरः-आत्माकी अत्यंत शुद्धता, अज्ञानसे छूट जाना, सब कौसे मुक्त होना मोक्ष है। याथातथ्य ज्ञानके प्रगट होनेपर मोक्ष होता है । जबतक भ्रान्ति रहे तबतक आत्मा जगत्में रहती है। अनादिकालका जो चेतन है उसका स्वभाव जानना-ज्ञान-है, फिर भी जीव जो भूल जाता है, वह क्या है ! जानने में न्यूनता है । याथातथ्य ज्ञान नहीं है । वह न्यूनता किस तरह दूर हो? उस जाननेरूप स्वभावको भूल न जाय, उसे बारंबार दृढ़ करे, तो न्यूनता दूर हो सकती है। ज्ञानी-पुरुषके वचनोंका अवलम्बन लेनेसे ज्ञान होता है । जो साधन हैं वे उपकारके हेतु हैं । अधिकारीपना सत्पुरुषके आश्रयसे ले तो साधन उपकारके हेतु हैं । सत्पुरुषकी दृष्टिसे चलनेसे ज्ञान होता है । सत्पुरुषके वचनोंके आत्मामें निष्पन्न होनेपर मिध्यात्व, अव्रत, प्रमाद, अशुभ योग इत्यादि समस्त दोष अनुक्रमसे शिथिल पड़ जाते हैं । आत्मज्ञान विचारनेसे दोष नाश होते हैं । सत्पुरुष पुकार पुकारकर कह गये हैं; परन्तु जीवको तो लोक-मार्गमें ही पड़ा रहना है, और लोकोत्तर कहलवाना है; और दोष क्यों दूर होते नहीं, केवल ऐसा ही कहते रहना है । लोकका भय १. पीराणा नामका मुसलमानोंका एक पंथ है, जिसके हिन्दू और मुसलमान दोनों अनुयायी होते है। भीयुत मित्र मणिलाल केशवलाल परिखका कहना है कि अहमदाबादसे कुछ मीलके फासलेपर पीराणा नामक एक गाँव है, जहाँ इन लोगोंकी बस्ती पाई जाती है।-अनुवादक.
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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