SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 636
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमद् राजचन्द्र परमार्थ । सद्गुरुके वचनोंका सुनना, उन वचनोंका विचार करना, उनकी प्रतीति करना, वह 'व्यवहार सम्यक्त्व' है । आत्माकी पहिचान होना वह 'परमार्थ सम्यक्त्व' है। अन्तःकरणकी शुद्धिके बिना बोध असर करता नहीं; इसलिये प्रथम अंतःकरणमें कोमलता लानी चाहिये। व्यवहार और निश्चय इत्यादिकी मिथ्या चर्चा में आग्रहरहित रहना चाहिये-मध्यस्थ भावसे रहना चाहिये । आत्माके स्वभावका जो आवरण है, उसे ज्ञानी 'कर्म' कहते हैं। जब सात प्रकृतियोंका क्षय हो उस समय सम्यक्त्व प्रगट होता है। अनंतानुबंधी चार कषाय, मिथ्यात्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय, समकितमोहनीय, ये सात प्रकृतियाँ जब क्षय हो जॉय, उस समय सम्यक्त्व प्रगट होता है। प्रश्नः-कषाय क्या है ! उत्तरः-सत्पुरुष मिलनेपर जीवको बताते हैं कि तू जो विचार किये बिना करता जाता है, उसमें कल्याण नहीं, फिर भी उसे करनेके लिये जो दुराग्रह रखता.है, वह कषाय है। उन्मार्गको मोक्षमार्ग माने, और मोक्षमार्गको उन्मार्ग माने वह 'मिथ्यात्व मोहनीय है। उन्मार्गसे मोक्ष होता नहीं, इसलिये मार्ग कोई दूसरा ही होना चाहिये-ऐसे भावको मिश्र मोहनीय' कहते हैं। 'आत्मा यह होगी'-ऐसा ज्ञान होना 'सम्यक्त्व मोहनीय' है। 'आत्मा है। ऐसा निश्चयभाव 'सम्यक्त्व' है। नियमसे जीव कोमल होता है। दया आती है । मनके परिणाम उपयोगसहित हों तो कर्म कम लगें; और यदि उपयोगरहित हों तो अधिक लगें। अंतःकरणको कोमल करनेके लिये-शुद्ध करनेके लिये-व्रत आदि करनेका विधान किया है । स्वाद-बुद्धिको कम करनेके लिये नियम करना चाहिये । कुल-धर्म, जहाँ जहाँ देखते हैं वहाँ वहाँ रास्तेमें आता है। (८) वडवा, भाद्रपद सुदी १३ शनि. १९५२ लौकिक दृष्टिमें वैराग्य भक्ति नहीं है; पुरुषार्थ करना और सत्य रीतिसे आचरण करना ध्यानमें ही आता नहीं। उसे तो लोग भूल ही गये हैं। लोग, जब बरसात आती है तो पानीको टंकीमें भरकर रख लेते हैं। वैसे ही मुमुक्षु जीव इतना इतना उपदेश सुनकर उसे जरा भी ग्रहण करता नहीं, यह एक आश्चर्य है। उसका उपकार किस तरह हो! ज्ञानियोंने दोषके घटानेके लिये अनुभवके वचन कहे हैं, इसलिये वैसे वचनोंका स्मरण कर यदि उन्हें समझा जाय-उनका श्रवण-मनन हो-तो सहज ही आत्मा उज्वल हो जाय । वैसा करने में कुछ बहुत मेहनत नहीं है। उन वचनोंका विचार न करे तो कभी भी दोष घटे नहीं। ___सदाचार सेवन करना चाहिये । ज्ञानी-पुरुषोंने दया, सत्य, अदत्तादान, ब्रह्मचर्य, परिग्रहपरिमाण वगैरहको सदाचार कहा है । ज्ञानियोंने जिन सदाचारोंका सेवन करना बताया है, वे यथार्थ है-सेवन करने योग्य हैं । बिना साक्षीके जीवको व्रत-नियम करने चाहिये नहीं। . . .. विषय कषाय आदि दोषोंके गये बिना जब सामान्य आशयवाले दया आदि भी आते नहीं, तो फिर
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy