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________________ प्रकाशकका निवेदन क्र. सं० १९६१ में मूल गुजराती ' श्रीमद्राजचन्द्र ' प्रकाशित हुआ था। म उसी समय इसका हिन्दी अनुवाद निकालनेका विचार था। इसके लिए सम्वत् १९७५ में अहमदाबादके स्व० सेठ पुंजाभाई हीराचन्दजीने पाँच हजार रुपयेकी सहायता भी परमश्रुतप्रभावक मंडलको दी । उसके बाद सं० १९८२ में 'श्रीमद्राजचन्द्र' की दूसरी आवृत्ति भी निकल गई, पर हिन्दी अनुवाद न निकल सका। मेरे पिताजीने इसके लिए बहुत कुछ प्रयत्न किया, एक दो विद्वानोंसे कुछ काम भी कराया, पर अनुवाद संतोषप्रद न होनेसे रोक देना पड़ा, और इस तरह समय बीतता ही गया। भाषान्तरकार्यमें कई कठिनाइयाँ थी, जिनमेंसे एक तो यह थी कि अनुवादक को जैनसिद्धान्तग्रन्थों तथा अन्य दर्शनोंका मर्मज्ञ होना चाहिये, दूसरे गुजराती भाषा खासकर श्रीमद्राजचन्द्रकी भाषाकी अच्छी जानकारी होनी चाहिए, तीसरे उसमें इतनी योग्यता चाहिये कि विषयको हृदयंगम करके हिन्दीमें उत्तम शैलीमें लिख सके। इतने लम्बे समयके बाद उक्त गुणोंसे विशिष्ट विद्वानकी प्राप्ति हुई, और यह विशाल ग्रन्थ राष्ट्रभाषा हिन्दीमें प्रकाशित हो रहा है । इस बीचमें मेरे पूज्य पिता और सेठ पुंजाभाईका स्वर्गवास हो गया, और वे अपने जीवन-कालमें इसका हिन्दी अनुवाद न देख सके। फिर भी मुझे हर्ष है कि मैं अपने पूज्य पिताकी और स्व० सेठ पुंजाभाईकी एक महान् इच्छाकी पूर्ति कर रहा हूँ। पं. जगदीशचन्द्रजीने इसके अनुवाद और सम्पादनमें अत्यन्त परिश्रम किया है। इसके लिये हम उन्हें धन्यवाद देते हैं । वास्तवमें, स्वर्गीय सेठ पुंजाभाईकी आर्थिक सहायता, मेरे स्वर्गीय पूज्य पिताजीकी प्रेरणा, महात्मा गांधीजीके अत्यधिक आग्रह और पंडितजीके परिश्रमसे ही यह कार्य अपने वर्तमान रूपमें पूर्ण हो रहा है। पिछले तीन-चार वर्षों में रायचन्द्रजैनशास्त्रमालामें कई बड़े बड़े ग्रन्थ सुसम्पादित होकर निकले हैं, जिनकी प्रशंसा विद्वानोंने मुक्तकंठसे की है। भविष्यमें भी अत्यन्त उपयोगी और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ निकालनेका आयोजन किया जा रहा है, कई अपूर्व प्रन्योंका हिन्दी अनुवाद भी हो रहा है, जो यथासमय प्रकाशित होंगे। पाठकोंसे निवेदन है कि वे इस ग्रंथका और पूर्व प्रकाशित ग्रंथोंका पठन-पाठन और खूब प्रचार करें जिससे हम ग्रन्थोद्धारके महान् पुण्य-कार्यमें सफल हो सकें । इस ग्रन्थका सर्वसाधारणमें खूब प्रचार हो इसीलिए मूल्य भी बहुत ही कम रखा गया है। निवेदक मणिभुवन, मकरसक्रान्ति सं. १९९४ मणीलाल रेवाशंकर जगजीवन जौहरी
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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