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________________ अनुपम क्षमा ] मोक्षमाला वे खेद, दुर्गति और पश्चात्ताप ही प्राप्त करते हैं। भोगोंके चपल और विनाशीक होनेके कारण स्वप्नके खेदके समान उनका परिणाम होता है । इसके ऊपरसे बुद्धिमान् पुरुष आत्म-हितको खोजते हैं । संसारकी अनित्यताके ऊपर एक काव्य है: उपजाति विद्युत् लक्ष्मी प्रभुता पतंग, आयुष्य ते तो जळना तरंग, पुरंदरी चाप अनंगरंग, शू राचिये त्यां क्षणनो प्रसंग ! विशेषार्थः-लक्ष्मी बिजलीके समान है । जैसे बिजलीकी चमक उत्पन्न होकर विलीन हो जाती है, उसी तरह लक्ष्मी आकर चली जाती है । अधिकार पतंगके रंगके समान है । जैसे पतंगका रंग चार दिनकी चाँदनी है, वैसे ही अधिकार केवल थोड़े काल तक रहकर हाथमेंसे जाता रहता है । आयु पानीकी लहरोंके समान है । जैसे पानीकी हिलोरें इधर आई कि उधर निकल गईं, इसी तरह जन्म पाया, और एक देहमें रहने पाया अथवा नहीं, कि इतने हीमें इसे दूसरी देहमें जाना पड़ता है । काम-भोग आकाशमें उत्पन्न हुए इन्द्र-धनुषके समान हैं। जैसे इंद्र-धनुष वर्षाकालमें उत्पन्न होकर क्षणभरमें विलीन हो जाता है, उसी तरह यौवनमें कामके विकार फलीभूत होकर जरा-वयमें जाते रहते हैं। संक्षेपमें, हे जीव ! इन समस्त वस्तुओंका संबंध क्षणभरका है । इसमें प्रेम-बंधनकी साँकलसे बँधकर मम क्या होना ! तात्पर्य यह है, कि ये सब चपल और विनाशीक हैं, तू अखंड और अविनाशी है, इसलिये अपने जैसी वस्तुको प्राप्त कर, यही उपदेश यथार्थ है। ४३ अनुपम क्षमा क्षमा अंतर्शत्रुको जीतनेमें खड्ग है; पवित्र आचारकी रक्षा करने में बख्तर है। शुद्ध भावसे असह्य दुःखमें सम परिणामसे क्षमा रखनेवाला मनुष्य भव-सागरसे पार हो जाता है। कृष्ण वासुदेवका गजसुकुमार नामका छोटा भाई महास्वरूपवान और सुकुमार था । वह केवल बारह वर्षकी वयमें भगवान् नेमिनाथके पास संसार-त्यागी होकर स्मशानमें उग्र ध्यानमें अवस्थित था । उस समय उसने एक अद्भुत क्षमामय चरित्रसे महासिद्धि प्राप्त की उसे मैं यहाँ कहता हूँ। सोमल नामके ब्राह्मणकी सुन्दरवर्णसंपन्न पुत्रीके साथ गजसुकुमारकी सगाई हुई थी। परन्तु विवाह होनेके पहले ही गजसुकुमार संसार त्याग कर चले गये । इस कारण अपनी पुत्रीके सुखके नाश होनेके द्वेषसे सोमल ब्राह्मणको भयंकर क्रोध उत्पन्न हुआ। वह गजसुकुमारकी खोज करते करते उस स्मशानमें आ पहुँचा, जहाँ महा मुनि गजसुकुमार एकाग्र विशुद्ध भावसे कायोत्सर्गमें लीन थे। सोमलने कोमल गजमुकुमारके सिरपर चिकनी मिट्टीकी बाड़ बना कर इसके भीतर धधकते हुए अंगारे भरे, और इसे ईधनसे पूर दिया। इस कारण गजसुकुमारको महाताप उत्पन्न हुआ। जब गजसुकुमारकी कोमल देह जलने लगी, तब सोमल वहाँसे चल दिया। उस समयके गजसुकुमारके असह्य दुःखका वर्णन कैसे हो सकता है। फिर भी गजसुकुमार समभाव परिणामसे रहे। उनके हृदयमें कुछ भी क्रोध अथवा द्वेष उत्पन्न नहीं हुआ। उन्होंने अपनी आत्माको स्थितिस्थापक दशामें लाकर यह उपदेश दिया, कि देख यदि तूने इस ब्राह्मणकी पुत्रीके साथ विवाह किया होता तो यह कन्या-दानमें तुझे पगड़ी देता । यह पगड़ी थोड़े दिनोंमें फट जाती और अन्तमें दुःखदायक होती। किन्तु यह इसका बहुत बड़ा उपकार हुआ, कि इस पगडीके बदले इसने मोक्षकी पगड़ी बाँध दी। ऐसे विशुद्ध परिणामोंसे अडग रहकर समभावसे असह्य
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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