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________________ ___ साहित्य जन-समूह के हृदय का विकास है ] की तो यहाँ तक तरक्की हुई कि कालिदास आदि कवियों की उक्ति-यक्ति के मुकाबले वेद का भद्दा और रूबा साहित्य अत्यन्त फी का मालूम होने लगा। कालिदास की एक-एक उपमा पर और भवभूति, भारवि, श्रीहर्ष, वाण की एक-एक छटा पर वेद के उम्दा से उम्दा सूक्त, जिनमें हमारे पुराने श्रार्यों ने मर-पच कर साहित्य की बड़ी भारी कारीगरी दिखलाई है, न्योछावर है । संस्कृत । के साहित्य के लिये विक्रमादित्य, का समय "श्रागस्टन पीरियड' कहलाता है। अर्थात् उस समय संस्कृत, जहाँ तक उसके लिए परिष्कृत' होना सम्भव था, अपनी पूर्ण सीमा तक पहुंच गई थी । यद्यपि भारवि, माघ, मयूर, प्रभृति कई एक उत्तम कवि धाराधिपति भोजराज के समय तक और उनके उपरान्त भी. जगनाथ पण्डितरोज तक बराबर होते ही गए, किन्तु संस्कृत के परिष्कृत होने की सामग्री उस समय तक पूरी हो चुकी थी । भोज का समय तो यहाँ तक कविता की उन्नति का था कि एक-एक श्लोक के लिए असंख्य इनाम कवियों को राजा भोज देते थे । वेद का साहित्य. उस समय यहाँ तक दब गया था कि छांदम मुखं की पदवी रक्खी गई थी। केवल पाठ-मात्र वेद जानने वाले छांदस कहलाते थे और वे अब तक भी निरे मूर्ख होते आये हैं।' बौद्धों के उच्छेद के उपरान्त एक जमाना पुराण के साहित्य का भी हिन्दुस्तान में हुआ। उस समय बहुत से पुराण उपपुराण और सहिताएँ दो ही चार सौ वष के हेर-फेर में रची गई। अब हम लोगों में जो धर्मशिक्षा, ' समाजशिक्षा और रीति-नीति प्रचलित है, वह सब शुद्ध वैदिक एक भी नहीं । है। थोड़े से ऐसे लोग हैं, जो अपने को स्मातं मानते हैं। उनमें तो अलवत्ता अधिकाश वेदोक्त कर्म का यत्किंचित् प्रचार पाया जाता है, सो भी केवल नाम1. मात्र को; पुराण उसमें भी बोच-बीच में था बुसा है। हमारी विद्यमान् छिन्न भिन्न दशा, जिसके कारण हजार चेष्टा करने पर भी जातीयता हमारे में श्राती ही नहीं, सब पुराण ही की कृपा है । जब तक वैदिक साहित्य हम लोगों मे प्रचलित था तव तक जातीयता के दृढनियमों मे जरा भी अन्तर नहीं होने पाया था। पुराणों के साहित्य के प्रचार से वड़ा लाभ भी हुआ कि वेद के । ।
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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