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________________ [हिन्दी-गद्य-निर्माण जो उपदेश दिये हैं और राजनीति की काटव्योत जैसी दिखाई है, उसे सुन बिस्मार्क सरीखे इस समय के राजनीति के मर्म मे कुशल राजपुरुषों की अक्ल भी चरने चली जाती होगी। इसमे निश्चय होता है कि प्रभुत्व और स्वार्थ साधन तथा प्रवंचना-परवश भारत उस समय तक उदार भाव, समवेदना आदि उत्तम गुणों से विमुख हो गया था। युधिष्ठिर धर्म के अवतार और सत्यवादी प्रसिद्ध है; पर उनकी सत्यवादिता निज कार्य-साधन के समय सब खुल गई । “अश्वत्थामा हतः नरो वा कुंजरो वा।" इत्यादि । कितने उदाहरण इस बात के हैं, किन्तु उन्हें विस्तारभय से यहां नहीं लिखन । महाभारत के उपरात भारत अोर का और ही हो गया। उसकी दशा के परिवर्तन के साथ ही साथ उसके साहित्य मे भी बड़ा परिवर्तन हो गया। उपरांत वौद्धों का जोर हुश्रा । यह सब वेद और ब्राह्मणों के बड़े विरोधी थे। वेद की भाषा संस्कृत थी। इसलिए उन्होंने संस्कृत को बिगाड़ प्राकृत भाषा जारी की। तब से संस्कृत सर्वसाधारण की वोलचाल की भाषा न रही। फिर भी संस्कृतभाषी उस समय बहुत से लोग थे, जिन्होंने इस नई भाषा को प्राकृत नाम दिया जिसके अर्थ ही यह है कि प्राकृत अर्थात् नीचों की भाषा । अतएव संस्कृत नाटकों में नीच पात्र की भाषा प्राकृत और उत्तम पात्र ब्रह्माण या राजा आदि की भाषा सस्कृत रक्खी गई है। कुछ काल उपरान्त यह भाषा भी बहुत उन्नति को पहुंचा । शौरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी, अर्धमागधी, पैशाची आदि इसके अनेक भेद है । इसमे भी बहुत से साहित्य के ग्रन्थ बने । गुणाढय, कवि का आर्यावद्ध लक्ष श्लोक का ग्रन्थ वृहत्कथा प्राकृत ही में है। सिवा इसके शालिवाहन-सप्तशती आदि कई एक उत्तम प्राकृत के अन्य और भो मिलते हैं । नन्द और चन्द्रगुप्त के समय इस भाषा की बड़ी उन्नति हो गई । जैनियों के सव अन्य प्राकृत हो म हैं, उनके स्तोत्र-पाठ प्रादि भी। सब इसी में हैं । इससे मालूम होता है कि प्राकृत किसी समय वेद की भाषा के समान पवित्र समझी गई थी। _ 'सस्कृत यद्यपि वोलचाल की भाषा इस समय न रह गई थी, पर हर एक विषय के ग्रन्थ इसमें एक से एक बढ़-चढ़ कर बनते गए। और साहित्य
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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