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________________ [हिन्दी-गद्य-निर्माण' कमल सा प्रफुल्लित नेत्र मानो हँसता-सा और अंग-अंग चुस्ती और चालाकी से फिरहरी की तरह फरका करते हैं, कटध्वनि भी तब बसन्त-मदमत्त कोकिला के कंठरव से भी अधिक मीठी और सोहावनी मन भाती है। मनुष्य के सम्बन्ध में इस अनुल्लंघनीय प्राकृतिक नियम का अनुसरण प्रत्येक देश का साहित्य भी करता है, जिसमे कभी क्रोधपूर्ण भयंकर गर्जन, कभी प्रेम का , उच्छवास कभी शोक और परिताप जनित हृदय-विदारी करुणनिस्वान, कभी चीरतागर्व से बाहुबल के हर्ष में भरा हुआ सिंहनाद, कभी भक्ति के उन्मेष. . से चित्त की द्रवता का परिणाम अश्रपात आदि अनेक प्रकार के भावों का उद्गार देखा जाता है। इसलिये साहित्य यदि जनसमूह (Nation) के चित्त का चित्रपट कहा जाय, तो संगत है। किसी देश के इतिहास से केवल बाहरी हाल हम उस देश का जान सकते हैं; पर साहित्य के अनुशीलन से. कौम के सब समय के बाभ्यन्तरिक भाव हमे परिस्फुट हो सकते हैं। . 'हमारे पुराने पार्यों का इतिहास वेद है । उस समय पार्यों की शैशवा वस्था थी; वालकों के समान जिनका भाव, भोलापन, उदार भाव, निष्कपट व्यवहार वेद के साहित्य को एक विलक्षण तथा पवित्र माधुर्य प्रदान करते हैं। वेद जिन महापुरुषों के हृदय का विकास था, वे लोग मनु और याशवल्स्य के समान समाज के आभ्यंतरिक भेद, वर्णविवेक श्रादि के झगड़ों में पड़ समाज की उन्नति या अवनति की तरह तरह की चिन्ता में नहीं पड़े थे; कणाद या कपिल के समान अपने-अपने शास्त्र के मूलभूत सुखों को आगे कर प्राकृतिक पदार्थों के तत्व की छान मे दिन-रात नहीं हूवे रहते थे, न कालिदास, भव-. भूति, श्रीहर्ष आदि कवियो के सम्प्रदाय के अनुसार वे लोग कामिनी के विभ्रमविलास और लावण्य-लीला-लहरी मे गोते मार-मार प्रमत्त हुए थे। प्रातःकाल उदयोन्मु'व सूर्य की प्रतिमा देख उनके सीधे-सादे चित्त ने विना कुछ विशेष छानबीन किये उसे अज्ञात और अजेय शक्ति' समझ लिया। उसके द्वारा व अनेक प्रकार लाभ देख काननस्थित विहंग-कूजन-समान कल-कल रव से प्रकृति की प्रभातवदना का साम गाने लगे; जल-भार-नत श्यामल-मेघमाला का नवीन सौंदर्य देख पुलकित गात्र हो कृतज्ञता-सूचक उपहार की भांति स्तोत्र ।
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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