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________________ साहित्य जन-समूह के हृदय का विकास है ] का पाट करने लगे; वायु जव प्रवल वेग मे बहने लगी, तो उसे भी एक ईश्वरीय शक्ति समझ उसके शान्ति करने को वायु की स्तुति करने लगे ' इत्यादि । वे ही सब ऋक और साम की पावन ऋचाएँ हो गई। उस समय - अब के समान राजनीतिक अत्याचार कुछ न था, इसीसे उनका साहित्य राजनीति की कुटिल उक्ति-युक्ति से मलिन नहीं हुआ था। नये आये हुये पार्यों की नूतन ग्रंथित समाज के संस्थापन मे सब तरह की अपूर्णता थी सही; परं सब का निर्वाह अच्छी तरह होता था, किसी को किसी कारण से किसी प्रकार का अस्वास्थ्य न था; आपस में एक दूसरे के साथ अब का-सा बनावटी कुटिल वर्ताव न था। इसलिये उस समय के उनके साहित्य वेद में भी कृत्रिम भक्ति, कृत्रिम सौहार्द, कपटवृत्ति, बनावट और चुनाचुनी ने स्थान नहीं पाया। उन आर्यों का धर्म अबके समान गला घोटने वाला न था। सब के साथ सबकी सहानुभूति खान-पान द्वारा रहती थी। उनके बीच धार्मिक मनुष्य अव के धर्मध्वजियों के समान दाम्भिक बन महाव्याधि सदृश लोगों के लिये गलग्रह न थे। सिधाई, भोलापन और उदारभाव उनके साहित्य के 'एक-एक अक्षर से टपक रहा है । एक बार महात्मा ईसा एक सुकुमारमति बालक को अपने गोद में बैठा कर अपने शिष्यों की ओर इशारा करके बोले जो कोई छोटे बालकों के समान भोला न वने, उसका स्वर्ग के राज्य में कुछ अधिकार नहीं है। हम भी कहते हैं, कि जो सुकुमारचित्त वेदभाषी इन पार्यों की तरह पद पंद में ईश्वर का भय रख, प्राकृतिक पदार्थी के सौंदर्य पर मोहित होकर, बालकों के समान सरलमति न हो उसका स्वर्ग के राज्य मे प्रवेश करना अति दुष्कर है। ___ इन्हीं प्राकृतिक पदार्थों का अनुशीलन करते-करते इन अायों को ईश्वर के विषय में जो-जो भाव उदय हुए, वे ही सब एक नये प्रकार का साहित्य उपनिषद् के नाम से कहलाये । जब इन आर्यों की समाज अधिक वढ़ी और लोगों की रीति नीति श्रोर बर्ताव मे भिन्नता होती गई, तब सबों को एकता के सूत्र मे बद्ध रखने के लिए अपने अपने गुण कर्म से लोग चल बिचल हो सामाजिक नियमों को जिसमें किसी प्रकार की हानि न पहुँचावें इस
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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