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________________ . वैष्णवता और भारतवर्ष ] हो सकते, इसका कर्ता स्वतन्त्र कोई विशेष शक्ति-सम्पन्न ईश्वर है। तप उसका स्वरूप जानने को इच्छा होती है, अर्थात् मनुष्य कर्मकाण्ड से शानकाण्ड में आता है ज्ञान काण्ड में सोचते-सोचते संगति और रुचि के अनुसार या तो मनुष्य फिर निरीश्वरवादी हो जाता है या उपासना में प्रवृत्त होता है। उस उपासना की विचित्र गति है । यद्यपि ज्ञान वृद्धि के कारण प्रथम मनुष्य, . साकार उपासना छोड़कर निराकार की रुचि करता है, किन्तु उससना करते- .. करते जहाँ भक्ति का प्राबल्य हुश्रा वहीं अपने उस निराकार उपास्य को भक्त . . फिर साकार करने लगता है। बड़े-बड़े निराकारवादियों ने भी "प्रमा दर्शन दो १ अरने चरणकमलों को हमारे सिर पर स्थान दो, अपनी साधुमयी वाणी श्रवण कराोग इत्यादि प्रयोग किया है। वैसे ही प्रथम सूर्य पृथ्वीवासियों को सब से विशेष श्राश्चर्य और गुणकारी वस्तु बोध हुई, उससे फिर उनमें देवबुद्धि हुई । देवबुद्वि होने ही से आधिभौतिक सूर्य मण्डल के भीतर एक प्राधिदैविक नारायण लाये गये । फिर अन्त में कहा गया कि नारायण एक सूर्य हा मे नहीं, सर्वत्र हैं, और अनन्तकोटि सूर्य, चन्द्र, तारा उन्हीं के प्रकाश , से. प्रकाशित हैं अथात् श्राव्यात्मिक नारायण की उपासना मे लोगों की । प्रवृत्ति हुई। इन्हीं कारणो से वैष्णवमत को प्रवृत्ति भारतवर्ष मे स्वाभाविक ही है; जगत में उपासना मार्ग ही मुख्य धर्म-माग समझा जाता है । कृस्तान, मुसल्मान, ब्राह्म, बौद्ध, उपासना सब के यहाँ मुख्य है। किन्तु, बौद्धों में अनेक सिद्धों की उपासना और तप आदि शुभ कामों के प्राधान्य से वह मत हम लोगों के स्मार्तमत के सदृश है और कृस्तान, ब्राह्म, मुसल्मान आदि के धर्म । में भक्ति की प्रधानता से ये सब वैष्णवों के सदृश हैं। इंजील में वैष्णवों के । अन्यों में बहुत सा विषय लिया है और ईसा के चरित्र में श्रीकृष्ण के चरित्र 'का साहश्य बहुत है, यह विषय सविस्तार भिन्न प्रबन्ध में लिखा गया है। तो जब ईसाइयों के मत को ही हम वैष्णवों का अनुगामी सिद्ध कर सके हैं, फिर मुसल्मान जो कस्तान के अनुगामी हैं वे हमारे अनुगामी हो चुके । यद्यापे यह निणय करना अब अति कठिन है कि अति प्राचीन ध्रुव,
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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