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________________ _ का प्रयोग व हुतं न्यून रूप में दिखाई देता है । शन्द विधान में कितनी उत्कृष्टता ___ और विशदता है यह इनकी भाषा से पूर्ण रूप से प्रगट हो सकता है । शब्दों । का सगठन और प्रयोग भी भावों के अनुरूप हुआ है। जब किसी विचार का । प्रतिपादन होने लगता है तो व्यवस्थित प्रवाह में तनिक भी अन्तर नहीं आने पाता । परन्तु इनके जो ग्रंथ अंग्रेजी के आधार पर अथवा अनुवाद रूप से लिखे गये हैं उनमे भाषा और भावों की जटिलता स्पष्ट दिखाई देती है । बाबू . । साहब का विचार है कि विराम आदि चिन्हों के व्यर्थ आडम्बर से भाषा और भी क्लिष्ट और दुरूह हो जाती है । आपने स्वय एक स्थान पर, लिखा है"जो विषय जटिल अथवा दुर्बोध हों, उनके लिए छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग ', सर्वथा वांछनीय है। और सरल , और सुबोध विषयों के लिए यदि वाक्य अपेक्षाकृत कुछ बड़े भी हो तो उनसे उतनी हानि नहीं होती है ।" इन्ही दो मागो पर चलकर इन्होंने भाषा शैली का विकसित स्वरूप प्रगट किया है। 'साहित्यालोनन' 'रूपकरहस्य' और 'भाषाविज्ञान' नामक पुस्तकों में इनकी जो शैली देखी जाती है, वह सुबोध नहीं है। इसका कारण विषय-गाम्भीर्य और अँगरेजी का अाधार भी हो सकता है । परन्तु “हिन्दी भाषा और साहित्य" तथा "गोस्वामी तुलसीदास' इत्यादि इनके नवीन ग्रन्थों से इनकी प्रगतिशील भाषा-शैली का पूर्ण परिचय मिलता है । बाबू साहब हिन्दी भाषा के एक बहुत बड़े महारथी ये । . पद्मसिह शर्मा शर्मा जी ने पं० ज्वालाप्रसाद जी मिश्र विद्यावारिधि की विहारी-सतसई की टीका की आलोचना "सतसई-सहार" के नाम से 'सरस्वती' में छपवाई थी। इसी से पहले पहल हिन्दी क्षेत्र में आपकी काफी प्रसिद्धि हुई । ये । फारसी, उर्दू और सस्कृत के अच्छे विद्वान थे। इसलिए इन भाषाओं का इनकी लेखन शैली पर अच्छा प्रभाव पड़ा है। हिन्दी साहित्य मे शर्मा जी तुलनात्मक अालोचना के जन्मदाता माने जाते हैं । इसके बाद अन्य लेखकों ने तुलनात्मक आलोचना की ओर ध्यान दिया। शमा जी की आलोचनाओं मे
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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