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________________ ( ३२ ) .. उनकी वैयक्तिक छाप है । इनकी भाषा शैली सजीव, सुन्दर मुहाविरेदार और कहीं-कहीं व्यगात्मक भी है । उसमे एक निराला वांकापन है, जो अन्य गद्य . कारों में प्रायः नहीं देखा जाता । यद्यपि शर्मा जी की आलोचनात्मक पद्धति वर्तमान समय को देखते हुए बहुत उच्च और परिष्कृत नहीं है, तथापि तुलना-त्मक आलोचना के जन्मदाता के रूप में शर्मा जी का स्थान महत्वपूर्ण अवश्य है । इनकी रचनाशैली मे एक विशेष प्रकार का आकर्षण है, जिससे विषय• ज्ञान के साथ-साथ पाठकों का मनोरंजन भी होता जाता है । जी नहीं ऊबता। किन्तु गम्भीर विवेवन शर्मा जी की शैली में नहीं प्राप्त होता । गवेषणात्मक लेखों के लिए शर्मा जी की भाषा उपयुक्त नहीं है। इसी कारण इनके आलोचनात्मक तथा विवेचात्मक लेखों में कहीं-कहीं भाषा की अस्वाभाविकता ग्वटकने लगती है। शर्मा जी की भाषा मे हिन्दी-उर्दू मिश्रित शन्दों का प्रयोग बड़े मौजूढङ्ग से हुआ है। किस विषय को किस प्रकार कहकर, अानन्द की धारा प्रवाहित की जा सकती है, यह इनकी भाषा शैली से स्पष्टतः 'प्रगट होता है । जहाँ कहीं भावों का प्रविल्य हुश्रा है वहाँ भाषा स्वाभाविक - रूप से कुछ गम्भीर भी हो गई है और अोज तथा प्रसाद गुण की विशेषता आ गई है । शर्मा जी की भाषा में दुरूहता कहीं नहीं दिखाई देती। इसका कारण यह है कि उनकी भाषा मुहाविरेदार है, और उर्दू के मौजं शब्दों का प्रयोग तथा हास्य-व्यंग का समावेश इनकी शैली में एक नया रंग उत्पन्न कर देता है । सारांश यह है कि शर्मा जी की भाषा हृदय पर चोट करने वाली,गुदगुदाने वाली और मर्मस्पर्शी है और हिन्दी के पालोचकों में इनकी शैली विनकुल निराली है। इनकी विहारी सतसई की भूमिका और टीका देखने योग्य है । इनके फुटकर निबन्धों का एक संग्रह "पद्मपराग" के नाम से “निकल चुका है । उसमे इनकी भाषा-शैली का आनन्द दिखाई देता है। रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी-गद्य-शैली के विकास में पडित रामचन्द्र शुक्ल की कृतियों का उच्च स्थान है। व्यक्तिगत रूप से शुक्ल जी जितने गम्भीर थे, वही गम्भीरता
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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