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________________ मिश्रबधुओं ने पं० प्रतापनारायण मिश्र आदि लेखकों की भांति,अपनी भाषाशैली और विषय रचना में एक प्रकार की भिन्नता स्थापित कर ली है। भाषा मे व्याकरण का विशेष वन्धन पार नहीं मानते। इस विषय मे श्राप बहुत उदार किंवहुना उच्छवलता के पक्षपाती हैं। उर्दू मिश्रित भाषा के श्राप कायल नहीं है, परन्तु विषय के अनुरूप भाषा-व्यवहार के श्राप पूर्ण पनपाती . हैं । कहीं-कहीं नाटक के अनुरूप शैली का भी प्रयोग इनकी भाषा में प्राप्त होता है । इनके कथोपकथन की प्रणाली आकर्षक है, किन्तु उसमें भी विवेचनात्मक ध्वनि-गाम्भीर्य वर्तमान है । श्यामसुन्दरदास काशी नागरी-प्रचारिणी सभा की स्थापना और विभिन्न रूप से हिन्दी साहित्य की लगभग ४० वर्ष से सेवा करके बाबू श्यामसुन्ददास ने हिन्दी संसार में एक विशेष महत्व का स्थान प्राप्त कर लिया था। वाबू साहब जहाँ एक ओर रचनात्मक कार्य करने में सफल हुए हैं, वहाँ उच्च कोटि के श्रेष्ठ साहित्यकार - की दृष्टि से भी आप की पर्याप्त प्रतिष्ठा है। इस समय तक कथा कहान आदि विषयों पर विशेष रूप से रचनायें हो रही थी और उसी के अनुरूप भाषा का भी प्रणयन हो रहा था। किन्तु वाबू श्यामसुन्दरदास ने अपनी शैली को एक विशेष गम्भीर दिशा की ओर अग्रसर किया और उसी के अनुसार विषयों का चुनाव भी किया। इन्होंने विषय गाम्भीर्य की ओर भी काफी ध्यान दिया है, किन्तु अपने विषय को समझाने की पूर्ण चेष्टा की है। जिस विषय को यह उठाते थे उस विषय का प्रतिपादन कर लेने के वाद "साराश यह है" लिखकर उसे दुवारा समझाने की चेष्टा करते थे जिससे उसका पूण रूप से वोध हो जाय । इसलिए सरलता की मात्रा भी इनकी भाषा मे पर्याप्त रूप से है । वाबू साहब विदेशी भाषा और विदेशी भावों के ग्रहण करने के पक्ष में होते हुए भी उसे शुद्ध रूप से ग्रहण करने के समर्थक थे । जिससे हिंदी भाषा मे उनका सम्मिलन सरलता से हो सके । इनकी भाषा-शैली का यह गुण है कि संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता में भी समासांत पदावली
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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