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________________ २०१ समाधान ] हमने समयानुकूल प्रत्येक परिवर्तनों को स्वीकार किया है । क्योंकि मानव बुद्धि इश्वरीय ज्ञान का, जो वेदों के द्वारा हमें मिला हैप्रस्तार करेगी, उसके विकास के साथ बढ़ेगी, और वही हमारे धर्म की श्रेष्ठता है। प्रख्यातकीर्ति-धर्म के अन्धभक्तो । मनुष्य अपूर्ण है। इसलिए, सत्य का विकास जो उसके द्वारा होता है, अपूर्ण होता है । क्योंकि इस असत्य सदृश्य समार में सत्य उसी का आश्रय लेकर प्रगट होता है, यही विकास का रहस्य है । यदि ऐसा न हो तो ज्ञान की वृद्धि असम्भव हो जाय । प्रत्येक प्रचारक को कुछ न कुछ प्राचीन असत्य परम्पराओं का आश्रय इसी नीति से ग्रहण करना पड़ता है, यदि ऐसा न करें तो उसके अनुयायी न मिलें । भीतर अपने दोषों को ढूढो, तुम बहुत-सी त्रुटियाँ अपने मे पायोगे । क्या कोई भी इस धर्म से मुक्त होगा ? श्रार्य धर्म इसी से महान् है कि वह सब सत्यों का समादर करता है; उसके क्षानग्रन्थ वेदों में सव ग्रंथों, के सूत्र संकलित हैं । भिक्षुगण, इसी से गौतम कहा करते थे कि, मैं पूर्व ऋषियों का धर्म कह रहा हूँ। प्रत्येक धर्म, समय और देश की स्थिति के अनुसार, निवृत्ति हो रहे हैं और होंगे । हम लोगों को हठधर्मी से उन आगन्तुक क्रमिक पूर्णता प्राप्त करनेवाले शानों से मुंह न फेरना चाहिए। हम लोग एक ही मूल धर्म की दो शाखाएं हैं। आओ, हम दोनों अपने उदार विचार के फूलो से, दुःख दग्ध मानवों का कठोर पथ कोमल करें। बहुत से लोग-ठीक तो है, ठीक तो है,हम लाग व्यर्थ आपस में ही झगड़ते . . हैं, और आततायियों को देखकर, घर में घुस जाते हैं ! हूणों के , सामने तलवार लेकर इसी तरह क्यों नहीं पड़ जाते ! दण्डनायक-यही तो बात है नागरिक ! प्रख्यातकीर्ति-बौद्ध जनता से मेरा निवेदन है कि मैं इस विहार का प्राचार्य हैं, और मेरी सम्मति धार्मिक झगड़ों मे उन्हें माननी चाहिए ।
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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