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________________ २०० . [हिन्दी-गद्य-निर्माण कर सकता है ! धर्म को बचाने के लिए तुम्हें राजशक्ति की आवश्यकता है-छिः ! धर्म इतना निर्बल है कि वह पाशव-बल . के द्वारा सुरक्षित होगा !! . श्रमण-प्रवृत्ति मूलक धर्म के व्यवसाय का यही परिणाम होगा । इसी से तो तथागत ने निवृत्ति-पथ के धर्म का प्रचार किया है। उनकी . अमोघ वाणी, विश्वकल्याण के लिए प्रचारित हुई, कुछ व्यवसाय के लिए नहीं। परन्तु वर्तमान समय में दोनों, केवल आधारस्वरूप प्रकृति की खिलवाड में फंसे हैं । एक प्राकृत महत् का अन्तमुख विकास है-जो कष्ट छुड़ाने की प्रतिज्ञा करता है, तो दूसरा उसी ' प्रकृति का वहिमुख विस्तार है-जो जीवन के लिए सुख-साधन की सामग्री जुटाने का प्रलोभन दिखाता है। ब्राह्मण-तुम कौन हो ? मूर्ख उपदेशक ! हट जाओ! तुम नास्तिक प्रच्छन्न वौद्ध ! तुमको क्या अधिकार है कि तुम हमारे धर्म की व्याख्या करो! धातुसेन ब्राह्मण क्यों महान् है ? ---इसीलिए कि वे त्याग और क्षमा की मूर्ति हैं, इस के बल पर बड़े बड़े सम्राट उनके श्राश्रमों के निकट निरस्त्र होकर जाते थे और वे तपस्वी ऋतु और अमृत वृत्ति से जीवन-निर्वाह करते हुए, सायं प्रातः अमिशाला में भगवान् से प्रार्थना करते थे सर्वेपि सुखिनः सन्तु सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिदुःखमाप्नुयात् ।। आप लोग उन्हीं ब्राह्मणों की सन्तान हैं ! सात्विक ब्रह्म-देव ! नैतिक और सामाजिक दृष्टि से भी आपको विचार करना चाहिए और धर्म के नाम पर तो 'बलि एक बार ही बन्द कर देनी चाहिए । देखिये, किसी कारणवश आपके पुरखों ने अपने प्राचीन धार्मिक कर्म-अनेक यशों को एक बार हा बन्द कर दिया था ! इसलिए हम यह मानते हैं कि हमारा धर्म अवरोधक नहीं है।
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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